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यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन
मूलक ( कोलाहलावलोकमूकमूकक- यादः (५२३।५) : जलजन्तु लोकम्, २०८०७ उत्त०) : मंडूक, यायजूकः (३२॥३) : हवन करनेवाला मेंढक
यावकः (५६।३ हि०) : अलक्तक मूर्छन्ति (२०१२): निकलना, प्रकट यावनालः (२५६।५ हि०) : जुवार
होना के अर्थ में इसका प्रयोग हुआ है। याष्टीकः (२१४६३ हि०) : प्रहरी मूढधीश्वरः (९।९): समीक्षक रजनिः (रजनिरसश्चूर्णरजसीव, मुमुरः ( विनिर्मितमुर्मुरोपहारास्विव, ४२२१७) : हल्दी ६५।१) : अंगार
रतिचतुरः (रतिचतुरविकरनखमुखावमूलक ( मालूरमूलकचक्रकोपक्रमम्, लिख्यमान, ३५१६) : कबूतर ४०५।१, भुंजीतमाषसूपं मूलक सहितं रक्ततुण्डः (१९८३१ उत्त०) : तोता न जातु हितकामः, ५१२।११) : मूली रक्ताक्षः (१८५।२ उत्त०) : भैसा मूषा ( विताप्यमानमूषाशुषिरेष्विव, रदिन (मदनरदिमदोद्दीपनपिण्डे, १५।१ ६५।३): श्रुतसागर ने इसका अर्थ उत्त०) : हस्ती, रदिन् का कई बार स्वर्ण गलाने वाली घरी किया है। प्रयोग हुआ है। वैसे यहाँ चूहा अर्थ भी संगत बैठ रल्लकः (२००५ उत्त०): रल्लक जाता है।
नामक जंगली बकरा। इसके ऊन से मौकुलिः (संततं धवलमौकुलिनादः, बना वस्त्र रल्लिका कहलाता था। २२९।६) : कौआ
सोमदेव ने रल्लिका का भी उल्लेख यक्षकर्दमम् (२८१२ उत्त०) : कंकोल, किया है। कोश ग्रन्थों में रल्लक को अगरु, कर्पूर, कस्तूरी को मिलाकर एक प्रकार का मृग कहा गया है। बनायी गयो सुगन्धी। इसे चतुःसम रल्लिका (३६८०२) : रल्लक नामक सुगन्धी भी कहते हैं।
जंगली बकरे के ऊन से बना वस्त्र । यजत्रम्(निवतितयजत्रकर्मभिः, १८५।३ रसवतीगृहम् (तस्मिन्नेव रसवतीगृहे हि०) : हवन करना
सकलरसप्रसाधन"",२२२१६ उत्त०): यन्त्रधारागृहम् (३९।१० हि.): रसोई घर स्नानगृह
रंकुः (२००१३) : एक प्रकार का मृग यवागूः (८८९ उत्त०) : लप्सी (नैष० २६८३)। यष्टि (३०१।७) : लाठी
राजिका (४०६।१) : राई। यागनागः ( २८८१७ ) : पट्टहस्ति, रावणशाकः (९८१७ उत्त०) : मांस गजशास्त्र में इसके विशेष गुणों का रिंगिणीफलम् (२५७।२ हि.): भटवर्णन है । सोमदेव ने भी अन्यत्र गज कटैया, कंटकारी प्रसंग में उनका विवरण दिया है। रुरुः (२००।४) : मृग विशेष
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