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यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन
तया उनका अभिप्राय खूटी से है। वारस्त्री (३२३१३) : वेश्या वष्कयणी (१८५६४ उत्त०): बहुत वाली (सैकतोल्लोलवालीविहारवाचालदिन को व्याई गाय, 'बकेन' या वारलम्, २०९।५ उत्त.): लहर, 'ठोकरी गाय' देशी भाषा में कहते हैं। तरंग वशा (वशया वनगज इव, २७.९ वालेयकः (१८६।२ उत्त०) : गधा उत्त०): हस्तिनी
वास्तुलः(वास्तुलस्तण्डुलीयः,५१६।७): वसा (१८६।२ उत्त०) : वन्ध्या गाय वास्तुल शाक, संभवतया जिसे आजवहित्रम् (३८८६८): नौका
कल 'बथुआ' कहते हैं। वृकः (२१९।१) : बकरा
वासनेयी (४६।२ उत्त०): रात्रि वृन्ताकम् (५१६६७) : बैंगन
वासवः (३१५।७) : मेघ वृष्णिका (१८४१६ उत्त०): बूढ़ी
वाहरिका (वीरणप्ररोहवत्पर्यस्तगाय
वाहरिकः, ३०१५) : हाथी बांधने का वृषः (२०४।२ उत्त०) : मूसा या चूहा
खूटा । श्रोदेव ने हाथी के पीछे के पैर
को बांधने वाला खूटा अर्थ किया है। वागुरा (२५३१२): जाल, बांधने ।
देशी भाषा में इसे 'पिछाड़ो' कहते हैं । का जाल वाजिः (१८६१३ उत्त०) : अश्व
वाहा (१९२१) : भुजा, बाह वाजिन् (३०८१५) : वाज पक्षी
विकर्तनः (७१।१०): सूर्य | वार्ताकम् (४०५।४) : बैंगन
विकृतः (४८६।१): रोगी वातूलः (४६।६) : वायु, अंधड़
विकिरः (५८:८) : पक्षी वाध्री (१२२१४): चमड़े की रस्सी विचकिलः (५२८१५, ५३२॥३):
मोगरा पुष्प वान्तादः (१८८०४ उत्त०) : कुत्ता
विजया (१९४।४) : हरड़ नामक वानरः (१९९।४ उत्त०) : बन्दर
औषधि वामना (१९६।२ उत्त०): हथिनी
वितर्दिका (९९ ४) : वेदिका, कोशों वामनम् (१९६।२ उत्त०) : मदन
में वितर्दि का प्रयोग आया है । महा.
वीरचरित में वितदिका भी आया है वामलूरः (२०४।४ उत्त०): वल्मीक, (६॥२४) । सांप की बॉमी
विधिः (२०१४) : नर्तन - नाचना वारवनिता (४१३३) : वेश्या, चकवी विनियोगः (१६११७ उत्त०) : अषिवारला (२४३१४, २०९।५ उत्त०): कार, राजाज्ञा हंसिनी, कोशों में वरटा शब्द माता विनेयः (७२।४ उत्त०): शिष्य,
विद्यार्थी
वृक्ष
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