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________________ ३३० यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन तया उनका अभिप्राय खूटी से है। वारस्त्री (३२३१३) : वेश्या वष्कयणी (१८५६४ उत्त०): बहुत वाली (सैकतोल्लोलवालीविहारवाचालदिन को व्याई गाय, 'बकेन' या वारलम्, २०९।५ उत्त.): लहर, 'ठोकरी गाय' देशी भाषा में कहते हैं। तरंग वशा (वशया वनगज इव, २७.९ वालेयकः (१८६।२ उत्त०) : गधा उत्त०): हस्तिनी वास्तुलः(वास्तुलस्तण्डुलीयः,५१६।७): वसा (१८६।२ उत्त०) : वन्ध्या गाय वास्तुल शाक, संभवतया जिसे आजवहित्रम् (३८८६८): नौका कल 'बथुआ' कहते हैं। वृकः (२१९।१) : बकरा वासनेयी (४६।२ उत्त०): रात्रि वृन्ताकम् (५१६६७) : बैंगन वासवः (३१५।७) : मेघ वृष्णिका (१८४१६ उत्त०): बूढ़ी वाहरिका (वीरणप्ररोहवत्पर्यस्तगाय वाहरिकः, ३०१५) : हाथी बांधने का वृषः (२०४।२ उत्त०) : मूसा या चूहा खूटा । श्रोदेव ने हाथी के पीछे के पैर को बांधने वाला खूटा अर्थ किया है। वागुरा (२५३१२): जाल, बांधने । देशी भाषा में इसे 'पिछाड़ो' कहते हैं । का जाल वाजिः (१८६१३ उत्त०) : अश्व वाहा (१९२१) : भुजा, बाह वाजिन् (३०८१५) : वाज पक्षी विकर्तनः (७१।१०): सूर्य | वार्ताकम् (४०५।४) : बैंगन विकृतः (४८६।१): रोगी वातूलः (४६।६) : वायु, अंधड़ विकिरः (५८:८) : पक्षी वाध्री (१२२१४): चमड़े की रस्सी विचकिलः (५२८१५, ५३२॥३): मोगरा पुष्प वान्तादः (१८८०४ उत्त०) : कुत्ता विजया (१९४।४) : हरड़ नामक वानरः (१९९।४ उत्त०) : बन्दर औषधि वामना (१९६।२ उत्त०): हथिनी वितर्दिका (९९ ४) : वेदिका, कोशों वामनम् (१९६।२ उत्त०) : मदन में वितर्दि का प्रयोग आया है । महा. वीरचरित में वितदिका भी आया है वामलूरः (२०४।४ उत्त०): वल्मीक, (६॥२४) । सांप की बॉमी विधिः (२०१४) : नर्तन - नाचना वारवनिता (४१३३) : वेश्या, चकवी विनियोगः (१६११७ उत्त०) : अषिवारला (२४३१४, २०९।५ उत्त०): कार, राजाज्ञा हंसिनी, कोशों में वरटा शब्द माता विनेयः (७२।४ उत्त०): शिष्य, विद्यार्थी वृक्ष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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