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यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन
चुलुकीसूनुः (तेन चुलिको सूनुना, यह जैन सिद्धान्त का एक पारिभाषिक २१६।२ उत्त०) : मगर
शब्द है । कर्मों के विशेष क्षयोपशमके चूण्ढी (चौण्ढ्यं धनानां पुनः, ५२०१२) : कारण पूर्व जन्म या पूर्व जन्मों के वृत्त चूरी बिना बंधा छोटा कुआँ । हेम- का स्मरण जातिस्मरण कहलाता है । नाममाला में चूरी और चूण्ढी दोनों जानक (जानकोत्रासितहरिण, १९८१३ शब्द आये है, अन्य कोशों में केवल उत्त०) : श्रुतसागरने जानक का अर्थ चूरी शब्द मिलता है । सोमदेव ने आरण्यवृषभ या बानर किया है । दोनों शब्दों का प्रयोग किया है सोमदेव के सन्दर्भ से वानर अर्थ ही (विलातवेल्लिकोच्चुलिंचितचुरीवारि- अधिक उपयुक्त लगता है । १९८१६ उत्त०)।
जीवन्ती (चिल्लो जीवन्तो, ५१६६७): चेटकः (४२३।६) : परस्त्री-लम्पट
राजडोडी चेतक : (१७१।२ उत्त०) : हरड़ का जुहूराणः (विनीताजानेयजुहूराणनि. चेतोभवः (५२१११) : कामदेव वहा, २१४।४) : अश्व चोलकम्(४३९।७, ४६६।४) : चोला, जेमनम् (जेमनावसरेषु स्वहस्तवर्तितचागा अर्थात् एक प्रकार का लम्बा
___ काय, १८२।२ उत्त०) : जोमनवार कोट ।
(देशी), भोज छागलधेनुः (२२२१५ उत्त०) : बकरी जैवात्रिकमंत्रम् (यायजूकलोकैर्जनित छेकः (९०१२) : चतुर, होशियार जैवात्रिकमन्त्रैः, ३२४ ३) : आयुवर्धक जगत्स्रष्टा (३८१५८) : महादेव मन्त्र जरण्डः (१२६८) : पुराना, जीर्ण झिल्लीका (झिल्ली काझल्लरीस्वरजनुषान्धत्वम् (६७।१ उत्त०) : सूचित, २४६।५) : झिल्ली नामक जन्मान्धत्व
कीड़ा । अभी भी इसे झिल्ली कहते जनापवादः (१४८।९ उत्त०): है। यह प्रायः बरसात में अधिक पैदा लोकापवाद
होते हैं और सन्ध्या होते ही बोलने जम्बूकः (जलनिधिमिव जम्बूकाध्युषि- लगते हैं। तम्, १९४।४ उत्त०) : शृगाल, वरुण टिरिटिल्लितम् (विजहीत धनयोवनजरूथम् (पिथुरापितजरूथमन्थर- मदोल्लासितानि टिरिटिल्लितानि,
कपालशकलम्, ४७।६) : गोला मांस ३७१।४, मिथ्या वष्टिरिटिल्लितं न जातवेदस (३६.३ हि०) : अग्नि सहते, ३९६५): व्यर्थ बकवास, जातिस्मरणम् (तदाकर्णनाच्च संजात- देशी भाषा में जिसे टेंटें मचाना कहते जातिस्मरणौ, २६४।२० उत्त० ): है। सोमदेव ने यह शब्द ध्वनि के
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