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यशस्तिलक की शब्द- सम्पत्ति
आधार पर लोक भाषा से स्वयं निर्मित किया लगता है । कोश ग्रन्थों में इसका प्रयोग नहीं मिलता । डामरिक : ( डामरिक निकायसायकविद्धवृद्धवराह, १९८७ उत्त० ) : बहे लिया । श्रुतसागर ने डामरिक का अर्थ चोर किया है पर सोमदेव के प्रयोग से बहेलिया अर्थ अधिक उपयुक्त लगता है । तण्डुलीयः ( वास्तुलवण्डुलीय, ५१६।७ ) : श्रुतसागर ने इसे अल्पमरिचशाक कहा है । इसे आजकल चोलाई कहते हैं । तपस्विनी (समर्थस्थानमिव तपस्विनीप्रचुरम् १९५२ उत्त० ): मुण्डीकह्लार तमंग (१८१८ ) : तमंग, कगूरा तमोपह: ( ३७२।८ ) : सूर्य तमोरातिमंडल (७/६ उत्त० ) : सूर्य तर्कुकः ( विभवाभिवृद्धिस्तर्कुक लोकसंतपंणाय, २६६ । ३ उत्त० ) : याचक वर्ण (तरीतर्णतुवरतरंग २१७|१ उत्त० ) : नदी में तैरने के लिए बनाया गया घास का घोड़ा |
तर्णकः (राजन्ते यत्र गेहानि खेल तेर्णकमण्डलै, १९७।३, अभ्वर्णवर्ण स्वनाकर्णनोदीपेन, ११।७ उत्त० ) :
वत्स, बछड़ा
तरण्ड (तरीक्षर्ण वरतरं गतरण्ड, २१७११ उत्त० ) : पानी पर तैरनेवाला काठका पटिया जिसे फलक कहते हैं ।
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तरक्षुः (तरक्षुचक्षुर्दुर्लक्ष्य, १९८/६ उत्त० ) : जंगली कुत्ते तरसम् (तरसरसिकराक्षस, उत्त० ) : कच्चा मांस
तरी (तरीतर्णतुवर तरंगतरण्ड, २१७:१ उत्त० ) : नौका
तल्लः (५२३६) : ताल
तलवरः ( २४५ । १७ उत्त० ) : अंगरक्षक, कोतवाल
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तलिका (८३०३) कड़ाही तलिनम् (३०९/५ ) : सूक्ष्म, छोटा तारः ( २०९।६ ) : तारा, नक्षत्र तारेश्वरः (तारेश्वर इव चतुरुदधिमध्यवर्तिनः, २०९।६) : चन्द्रमा । तारा या तारक नक्षत्रों को कहते हैं, उनका ईश्वर तारेश्वर ।
तुवरतरंगः (तरीतर्णतुवरतरंग, २१७।१ उत्त० ) : पानी पर तैरने वाला काठका पटिया । श्रुतसागर ने इसका अर्थ 'दौधिकफलतरणोपाय' किया है । तूलिनी ( तूलिनीकुसुमकुड्मलाकृतिः, ३९७।७ ) सेंमल का पेड़ त्रपुः (१८५/७ ) : रांगा त्रिनेत्रम् (१९७२ उत्त० ) : नारियल त्रोटी (२४९।२) : चूँच दधिमुखः (१६२।५ उत्त० ) : गधा दर्पः (२५३३१ ) : कामदेव, मो० वि० में दर्पक शब्द कामदेव के लिए आया है ।
दशबलः (२०२२) : बुद्ध दशः (५८७/२) : दाँत
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