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यशस्तिलक की शब्द-सम्पत्ति
३१७ गौरखुरः (गौरखुराकुलितहस्तः, १४५। चन्द्रलेखा (धूर्जटिजटाजूटमिव चन्द्र१): श्रुतसागर ने इसका अर्थ गर्दभ लेखाध्यासितम्, १९५।३) : वाकुची। के समान पशु किया है। कोशों में आयुर्वेदिक ग्रन्यों में इसका उल्लेख गौर को मृग विशेष कहा है। मिलता है। गौरधामन् (२३११३): चन्द्रमा । मो० चमूरः (१४४५) : व्याघ्र वि० में गोर शब्द चन्द्र के लिए दिया चलनः (३४।४) : पैर
चावी ( चावी चिनोति परिमुंचति घर्घरमालिका (मुक्त्वा घर्घरमालिकां चण्डभावम, २६९।९) : बुद्धि कटितटात्, २३४।५): कांची, कर- चाषः (चाषच्छदमर्छत्, २०१२) : भास धनी
पक्षी, जलकाक घङ्घा (महाघङघाघ्रातचित्तस्य, से
य, चिकुरः (३८।२) : केश ४४६।९): तृष्णा । निर्णयसागर वाली चित्रकः ( नाटेरमित्र सचित्रकम्, प्रति का जंघा पाठ गलत है।
१९४।२) : चीता घनः (१९४।३ उत्त०) : समूह,धनोभूत चित्रशिखण्डि (चित्रशिखण्डिमण्डली. घटदासी (४३४।१) : नौकरानी
९२१४) : सप्तर्षि । मरीचि, अंगिरस, घोटिका (५३।३ उत्त०) : घोड़ी
पौलस्त्य, अत्रि, पुलह, क्रतुः तथा घोरघृणिः (६६।३) : सूर्य
वशिष्ठ ये सप्तर्षि माने जाते हैं चक्रकम् (अवालमालूरमूलकचक्रकोप- (महा० १२१३३५.२९)। क्रमम्. ४०५।१) : खट्टे पत्तोंवाला चिपिटः (अनवरतचिपिटचर्वणदीर्ण. साग । खटुआ देशी भाषा में प्रचलित दशनाग्रदेशः, ४६६।३) : चिउड़ा,
चावल का चिउड़ा चक्रिन (४१३।५) : कुम्हार चिटिका (अभृष्टचिर्भटिकाभक्षण, चण्डभावः (२६९।९) : गुस्सा ४०५।१) : कचरी, छोटा फूट मो० वि० में चण्ड शब्द आया है। चिल्ली(तरंगरेखाश्चिल्लीषु.१९१।४): अत्यन्त क्रोधी स्त्री को चण्डी कहते भौंह । चिल्लो एक प्रकार का साग हैं (चण्डी त्वत्यन्तकोपना)।
भी होता है, जिसका सोमदेव ने चण्डातकम् (१५०।६) : जांघिया, अन्यत्र उल्लेख किया है (५१६।७) । घंघरी
चिलीचिमः (चिलीचिमनिरीक्षणः, चन्द्रः (१७३।६) : स्वर्ण, कर्पूर २१३।१) : मत्स्य चन्द्रकापोड(कृतकार्धचन्द्र चुम्बितचन्द्र- चुरी (१९८१६ उत्त०) : कच्चा कुआँ कापोड, ३९७१७) : मयूर की पूंछ चुलुकी (२१६।२ उत्त०) : मगरी या का बना मुकुट
मगरनी
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