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यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन क्षेपणिः (३९०६) : श्रुतसागर ने इसे गजायित (१२२।८) : गज के समान गोला गोफणि कहा है। देशी भाषा में आचरण इसे गुथनिया कहते हैं।
गन्धर्वः (भरतप्रयोग इव सगन्धर्वाः, खट्वांकः (४५।२): कौल सम्प्रदाय के १२१६) : अश्व साधुओं का एक उपकरण । सोमदेव गन्धवाहा (१२८१२): नाक ने इसका कई बार प्रयोग किया है। गणिका (१५९।४ उत्त०) : हथिनी खदरिका (२६१८ उत्त०) : धूर्त स्त्री गण्डक (प्रचण्डगण्डकवदनविदार्यमाण, खरकरः (खरकरानुव्रजनपराम्बर, २००१३ उत्त०) : गेंडा ४।१ उत्त०) : सूर्य
गर्वरः (खर्वति गर्वरेषु गर्ने, ६८.२) : खरमयूखः (७१।१२) : सूर्य भैंसा खारपटिकः (आः पापाचार खार- गलः (यमदंष्ट्राकोटिकुटिलः पपात पटिक, ४२७१६): मु. प्रति का काप- गलनाले गल:, २१७।८): मछली टिक पाठ गलत है। श्रीदेव ने खार. पकड़ने का लोहे का कांटा। पटिक का अर्थ ठक अर्थात ठग दिया गवल (गवलवलयावरुण्डनः,३९८१४):
महिषशृंग खाण्डवम् (नेत्रनासारसनानन्दभावः गायत्री (अवेदवचनमपि गायत्रीसारम्, खाण्डवैः, ४०१।४) : खांड (देशी), १९५।५ उत्त०) : खदिर वृक्ष खाण्डव नामक मिष्ठान्न
गिरिकः (३०११) : गेंद खुरली (शस्त्रप्रयोगखुरली खलु क: गिरिकलीला (गिरिकलीलालुलितकरोतु, ६००।८) : सैनिक व्यायाम महाशिला, ३०।१): कन्दुकक्रीड़ा खेटः (खेचरखेट २३३।१ उत्त०): गुडः (गुडपिप्पलिमधुमरिचैः, ५१२।
१०) : गुड़, खेयम् (३७८१४) : खाई
गुलुंचः (२४४।२) : फूलों का गुच्छा गृष्टिः (गणतिथिभिष्टिभिः, १८६।१ गुवाकः (गुवाकफलकषायितवदनवृत्तिउत्त०): एक बार व्याई गाय । कालि- भिः,४६६।३) : सुपारी का पेड़ दास ने भो प्रयोग किया है ( रघु० गुह्या (गुह्यापिहितमेहनः, ३९८१६) : २।१८)।
लंगोट गृध्नुता (२४३।२ उत्त०) : लालच गोमिनी (गोमिनीपतिश्यालवपुषि, कालिदास ने रघु को लिखा है कि ७७१६): लक्ष्मी वह अगृध्नु होकर अर्थ का उपार्जन गोसवः (११७१४ उत्त०) : गोयज्ञ करता था।
गोष्ठम् (१८४१४ उत्त०) : गोशाला
नीच
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