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________________ में मिला । यही कारण है कि उनके लिए भी वादीभपंवानन, ताकिकचक्रवर्ती प्रादि विशेषण प्रयुक्त किये गये हैं। इस सम्पूर्ण समाग्नी को प्रमाणक साक्ष्यों के साथ पहले परिच्छेद में दिया गया है। __ परिच्छेद दो में यशस्तिलक की संक्षिप्त कथा दी गयी है तथा उसकी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डाला गया है। महाराज यशोधर के पाठ जन्मों की कहानी का सूत्र यशस्तिलक के प्रासंगिक विस्तृत वर्णनों में कहीं खो न जाये, इसलिए संक्षिप्त कथा का जान लेना आवश्यक है। कथा के माध्यम से सिद्धान्त और नीति की शिक्षा की परम्परा प्राचीन है। यशस्तिलक की कथा का उद्देश्य हिंसा के दुष्प्रभाव को दिखाकर जनमानस में अहिसा के उच्च आदर्श की प्रतिष्ठा करना था। यशोधर को आटे के मुर्गे की बलि देने के कारण छह जन्मों तक पशुयोनि में भटकना पड़ा तो पशुबलि या अन्य प्रकार की हिंसा का तो और भी दुष्परिणाम हो सकता है। सोमदेव ने बड़ी कुशलता के साथ यह भी दिखाया है कि संकल्पपूर्वक हिंसा करने का त्याग गृहस्थ को विशेष रूप से करना चाहिए। कथावस्तु की यही सांस्कृतिक पृष्ठभूमि है । परिच्छेद तीन में यशोधरचरित्र की लोकप्रियता का सर्वेक्षण है। यशोधर की कथा मध्ययुग से लेकर बहुत बाद तक के साहित्यकारों के लिए एक प्रिय और प्रेरक विषय रहा है। कालिदास ने अवन्ति जनपद के उदयन कथा कोविद ग्रामवृद्धों की बात कही थी, यशोधर कथा के विशेषज्ञ मनीषी पाठवीं शती के भी बहुत पहले से लेकर लगभग आजतक यशोधर की कथा कहते पाये । उद्योतन सूरि (७७९ ई.) ने प्रभञ्जन के यशोधरचरित्र का उल्लेख किया है। हरिभद्र की समराइच्चकहा में यशोधर की कथा प्रायी है। बाद के साहित्यकारों ने प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, पुरानी हिन्दी. गुजराती, राजस्थानी, तमिल और कन्नड़ भाषानों में यशोधरचरित्र पर अनेक ग्रन्थों की रचना की । प्रो०पी०एल० वैद्य ने जसहर चरिउ की प्रस्तावना में उन्तीस ग्रन्थों की जानकारी दी थी। मेरे सर्वेक्षण से यह संख्या चौवन तक पहुँची है। अनेक शास्त्र भण्डारों की सूचियाँ अभी भी नहीं बन पायीं। इसलिए सम्भव है अभी और भी कई ग्रन्थ यशोधर कथा पर उपलब्ध हों। द्वितीय अध्याय में यशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन का विवेचन है। इसमें बारह परिच्छेद हैं। परिच्छेद एक में समाज गठन और यशस्तिलक में उल्लिखित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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