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अवक्षेप: (१००।५ उत्त० ) : तिरस्कार अवधि: ( अवधिबोधप्रदीपेन, १३६।२ ) : अवधिज्ञान | जैन दर्शन में ज्ञान के पाँच भेद माने गये हैं- मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मन:पर्ययज्ञान, केवलज्ञान । द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा सीमित भूत, भवियत् तथा वर्तमान काल के पदार्थों को जानने वाला ज्ञान अवधिज्ञान कहलाता है ।
अबतोका (१८६।२ उत्त०) : श्रुतसागर ने इसका अर्थ सींग रहित या मुण्डी गाय किया है, मो० वि० में इसका अर्थ जिसका गर्भ गिर गया है, किया गया है । अवन्तिसोमम् (अनल्पराजिकावजितावन्तिसोम, ४०६।१ ) : कांजी अवग्रहणीः ( समुत्सृष्टग्रहावग्रहणीदेशया, २७६, प्रतीक्ष्यमाण गृह गृहावग्रहणी, १८५।४ उत्त० ) : देहली अवसानः ( भारतकथेव धृतराष्ट्राव साना, २०६५ उत्त० ) : मृत्यु, सीमा,
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तट
अवि' (१२।६) : भेड़ अवहेलः (पुरोहितस्यावहेलेन, ४३१ । ७ ) : तिरस्कार, उपेक्षा | हिन्दी में अवहेलना शब्द अभी भी इसी अर्थ मैं प्रचलित है ।
अवासस् (१०१।१० उत्त० ) : निर्ग्रन्थ
अषडक्षीणः (२१५।५ उत्त० ) : मत्स्य
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यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन
अष्टापद ( स्वर्धुनीप्रवाहमिव कृताष्टापदावतारम्, १९४२ उत्त ० ) : कैलास पर्वत । हिमालय की कैलास चोटी से गंगा का उद्गम मानते हुए, यह प्रयोग किया गया है । अष्टापद का दूसरा श्लिष्ट अर्थ शरभ भी यहाँ लेना है । अष्टापद का कैलास अर्थ में प्रयोग महत्त्वपूर्ण है । अष्ठीलम्
(कठोराष्ठीलपृष्ठ कमठ, ६७/५ ) : कछुए के पृष्ठ का मध्यभाग अशिश्विदानः (१४११८) : निर्मल
असंतापम् (अमृतकान्तिमिवासंतापम्
२९९।१) असंतापम् का सामान्य अर्थ संताप न देनेवाला है । गजशास्त्र में गज के गुणों में असंताप की गणना की जाती है । अस्त्र इत्यादि को सहन करना, विचलित न होना असंताप
( अस्त्रादीनां च सहनादसंतापं विदुर्बुधा:, - सं० टी० ) । असंहतव्यूहः ( दण्डासंहतभोग मण्डल - विधीन्व्यूहान् ३०४|५ ) : युद्ध में व्यूह रचना के जो अनेक प्रकार थे, उनमें एक असंहतव्यूह भी था । इसमें सेना को यहाँ वहाँ छिट-पुट बिखेर दिया जाता था ।
( प्रसारितासरालरसना,
असराला
४६ । ३ ) : लम्बी, दीर्घ असितर्तिः (असितर्तिमिव तेजस्विनम्,
२९८/३ उत्त० ) : अग्नि अहिमधाम: १९।३) :
सूर्य
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( अहिमधामवृष्णिः,
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