SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 324
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २९६ यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन १२. शिखण्डिताण्डवमण्डन सुवेला पर्वत से पश्चिम की ओर शिखण्डिताण्डवमण्डन नाम का वन था।६ सोमदेव ने इस वन का विस्तृत एवं आलंकारिक वर्णन किया है, किन्तु उस सम्पूर्ण वर्णन से भी इस वन की पहचान करने में कोई मदद नहीं मिलती। १३. सुवेला हिमालय के दक्षिण की ओर सुवेला नामक पर्वत था ।१७ सोमदेव ने सुवेला पर्वत का विस्तार के साथ आलंकारिक वर्णन किया है। हिमालय के दक्षिण में शिवालिक पर्वत श्रेणियां हैं। सुवेला की पहचान इसी से करना चाहिए । गंडक, घाबरा, गंगा, यमुना, गोमती, कोशी आदि नदियां यहां से होकर निकलती हैं। १४. सेतुबन्ध सं० टीकाकार ने सेतुबन्ध का अर्थ दक्षिण पर्वत दिया है । १५. हिमालय यशस्तिलक में हिमालय का कई बार उल्लेख है । हिमालय के शिखरों पर तपस्वियों के आश्रम थे ।१९ इसको चोटियां बर्फ से ढकी रहती थीं, इसलिए इसका प्रालेयशैल तथा तुषार गिरि नाम पड़ा। तुषारगिरि के झरने हेमन्त ऋतु को ठंडी हवा में जमकर निष्पन्द हो जाते थे । २० १६. सुवेलशैलादपर दिग. "शिखण्डिताण्डवमण्डनम् । – पृ० १०३ उत्त. १७. हिमालयादक्षिणदिक्कपोल: शैल: सुवेलोऽस्ति लताविलोलः। - पृ० १६७ उत्त० १८. सेतुबन्धश्चापिर्वतः। - पृ० २१३, सं० पू० १६. प्रालेयशैलशिखराश्रमतापसानाम् । - पृ० ३२२ २०. तुषारगिरिनिर्भरनीहारनिष्पन्दिनि । - पृ० ५७४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy