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यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन
५. एकानसी
एकानसी का अर्थ यशस्तिलक के संस्कृत टीकाकार ने उज्जयिनी किया है। अन्यत्र एकानसी को अवन्ति जनपद में बताया है। इससे टीकाकार के अर्थ की पुष्टि होती है। ६. कनकगिरि
यशस्तिलक के संस्कृत टीकाकार के अनुसार उज्जयिनी के समीप सुवर्णगिरि पर स्थित नगर का नाम कनकगिरि था ।२° उज्जयिनी से इसकी दूरी केवल चार कोस ( गव्यूतिद्वयं ) थी। यशोधर को कनकगिरि का स्वामी बताया गया है ।२१ ७. कंकाहि ___ यह उज्जयनी के निकट एक छोटा-सा गांव था। इसके निवासी नमदे तथा चमड़े के जोन बनाते थे। २२
८. काकन्दी
यशस्तिलक में काकन्दी का उल्लेख तीन बार हुआ है। इन साक्ष्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि काकन्दी काम्पिल्प के आस-पास था। काम्पिल्य की पहचान उत्तरप्रदेश के फर्रुखाबाद जिले में स्थित काम्पिल्य नामक स्थान से की जाती है। यशस्तिलक में कृपण सागरदत्त अपने भानजे की मृत्यु का समाचार पाकर काम्पिल्य से काकन्दो जाता है और जल्दी लौट आता है। इससे ये दोनों पास-पास प्रतीत होते हैं। बाद के अनुसन्धान और उत्खनन से काकन्दी की स्थिति उत्तरप्रदेश के देवरिया जिले में मानी जाने लगी है। नोनखार स्टेशन से लगभग तीन मील दक्षिण खुखुन्दू नामक ग्राम से इसकी पहचान की जाती है। यहाँ प्राचीन जैन मन्दिर भी है तथा उत्खनन में प्राचीन वस्तुएँ प्राप्त हुई हैं।
यशस्तिलक के उल्लेखानुसार काकन्दी व्यापार का एक बहुत बड़ा केन्द्र था। सोमदेव ने इसे सम्पूर्ण संसार के व्यापार या व्यवहार का केन्द्र कहा है ।२३
१८. पृ० २२६ उत्त० १६. प्रा० ७, क० २५ २०. पृ० ५६६ २१. पृ० ३७६ हि० २२. उज्जयिनीनिकषा नमताजिनजेणाजीवनोटजाकुले कंकाहिनामके। -पृ० २१८, उत्त० २३. सकलजगद् व्यवहारावतारत्रिवेद्यां काकन्द्याम् । - आ० ७, क० ३२
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