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________________ यशस्तिलककालीन भूगोल २८३ राजाओं की राजधानी के रूप में प्रसिद्ध रही है।६ वहाँ के प्रासादों पर ध्वजाएं लगायी गयी थीं। सफेद पताकाओं के कारण सब ऐसे लगते थे जैसे हिमालय की चोटियां हों। वहाँ पर नवीन पल्लव तथा मालाओं वाले तोरण बनाये गये थे। वहां के लोग मयूर पालने के शौकीन थे जो कि मकानों पर खेलते रहते थे ।° भवनों के साथ ही गृहोद्यान थे, जिनमें सभी ऋतुओं के फल-फूल लगे थे ।२१ उज्जयिनी के पास ही सिप्रा नदी बहती थी जिसकी ठंडी-ठंडी हवा का नागरिक रात्रि में घर बैठे आनन्द लेते थे ।१२ भवनों में गृहदीपिकाएं बनायी गयी थीं।२३ नगरी में देवालय, बगीचे, सत्र, धर्मशालाएँ, वापी, वसति, सार्वजनिक स्थान बनाये गये थे ।१४ उज्जयिनी धन-धान्य से इतनी समृद्ध थी कि मानो वहाँ समुद्रों के सभी रत्न, राजाओं की सभी वस्तुएँ तथा सभी द्वीपों को सारभूत सामग्रो इकट्ठी हो गयी हों।१५ वहां की कामिनियाँ अतिशय रूपवती थीं। लोग चरित्रवान् थे, त्यागी दानी थे, धर्मात्मा थे।२६ ४. एकचक्रपुर इसका एक बार उल्लेख है। संभवतया एक चक्रपुर विन्ध्याचल के समीप था। एकपाद नामक परिव्राजक गंगा ( जाह्नवी ) में स्नान करने के लिए एकचक्रपुर से चला और उसे रास्ते में विन्ध्याटवी मिली १७ ६. पृथुवंशोद्भवात्मनाम् विश्वंभरेशानाम् । -वही ७. सौधनद्धध्वजाप्रान्त। वही ८, सितकेतुसमुच्छ्रयः हरादिशिखराणीव । वही ६. नवपल्लवमालांकाः यत्र तोरणपंक्तयः ।-वही १०. क्रीडत्कलापिरम्याणि हाणि । पृ-२०५ ११. सर्वतुश्रीश्रितच्छायानिष्कुटोद्यानपादपाः ।-वही १२. नक्तं सिप्रानिलैयंत्र जालमार्गानुगैः ।-वही १३. गृहदीषिकाः । -पृ० २०६ १४. पृ० २०८ १५. सर्वरत्नानि वार्धीनां सर्ववस्तूनि भूभृताम् । द्वीपानां सर्वसाराणि यत्र संजग्मिरे मिथः।-पृ० २०६ १६. पृ० २०६ १७. एकचक्रात्पुरादेकपान्नामपरिव्राजको जाहनवीजलेषु मज्जनाय वजन् विन्ध्याटवी विषये ।-पृ० ३२७ उत्त. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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