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यशस्तिलककालीन भूगोल
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३९. बंग या बंगाल
यशस्तिलक में दो बार बंग ४ तथा एक बार बंगाल का उल्लेख हुआ है। प्रो० हन्दिकी ने दोनों को एक बताया है किन्तु सोमदेव ने स्पष्ट ही एक ही स्थान पर दोनों का अलग-अलग उल्लेख किया है । कल्चुरी विज्जल (११५७-६७ई०) के अब्लर शिलालेख में भी बंग और बंगाल का अलग-अलग उल्लेख है। प्राचीन बंग का दक्षिणी प्रदेश ही बाद में बंगाल नाम से प्रसिद्ध हुआ । चन्द्रद्वीप अर्थात् बाकरगंज और उससे सम्बद्ध प्रदेश बंगाल कहलाता था । ७ ग्यारहवीं शती में ढाका जिला बंगाल में था। चौदहवीं शत.ब्दी में सोनारगांव बंगाल की राजधानी के रूप में प्रसिद्ध था और बंगाल ढाका से चटगांव तक फैला हुआ था। ४०. बंगी
बंगो का यशस्तिलक में दो बार उल्लेख हुआ है । बंगी और वेंगी एक ही प्रतीत होते हैं। गोदावरी और कृष्णा नदी के मध्य में स्थित जिले, जहाँ पूर्वीय चालुक्यों का राज्य था, वेंगी कहलाता था। किन्तु यशस्तिलक की टोका में बंगी को रतनपुर कहा है।९० रतनपुर आजकल मध्यप्रदेश के विलासपुर के उत्तर में स्थित है। यह दक्षिण कौशल की राजधानी थी और वहाँ त्रिपुरी के चेदी वंश की एक शाखा राज्य करती थी। टीकाकार का बंगी को रतनपुर बताना उचित नहीं है। ४१. श्रीचन्द्र
श्रीचन्द्र का केवल एक बार उल्लेख है।९१ संस्कृत टीकाकार ने श्रीचन्द्र को कैलाश पर्वत का स्वामी बताया है। यह सम्राट् यशोधर के लिए चन्द्रकान्त के उपहार लेकर उपस्थित हुआ था।२ ।। ८४. भन्यैश्चांगकलिंगबंगपतिभिः । - पृ० ४६६
वंगेषु स्फुलिंगः । -पृ० ४३१ ८५. बंगालेषु मण्डलः। - वही ८६. इंडियन हिस्टॉरीकल क्वार्टरली, भाग २२, पृ० २८० ८७. सरकार-दी सिटी ऑव बंगाल. भारतीय विद्या, जिल्द ५, पृ० ३६ ८८. वहीं ८६. बंगीवनिताश्रवणावतंस । -पृ० ६८ हि० । बंगीमण्डले । -पृ० ६५ उत्त० १०. वही, सं०टी० ६१. पृ० ३१४ हि० १२. श्रीचन्द्रश्चन्द्रकान्तैः । -पृ० ३१४ हि.
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