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यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन
दशार्ण को राजधानी विदिशा थी । विदिशा और उदयगिरि पहाड़ी के मध्य में प्राचीन राजधानी के भग्नावशेष पाये जाते हैं । धसान और वेत्रवती इसकी प्रसिद्ध नदियाँ हैं । कालिदास के मेघ ने दशार्ण में पहुँच कर विदिशा का आतिथ्य स्वीकार किया था और वेत्रवती के निर्मल जल का पान किया था ( मेघदूत १।६-७ ) ।
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२६. प्रयाग
सोमदेव ने प्रयाग का जनपद के रूप में उल्लेख किया है ( प्रयागदेशेषु, पृ० ३४५ उत्त० ) । प्रयाग के सिंहपुर नगर में सिंहसेन नामक राजा राज करता था । ६६
२७. पल्लव
यशस्तिलक में पल्लव का उल्लेख तीन बार हुआ है । ६७ प्राचीन समय में कांची ( कांबीवरम् ) प्रदेश को पल्लव कहते थे । इस पर पल्लवों का राज्य था । नवमी शताब्दी के अन्त में उन्हें चोलों ने हरा दिया । जब सोमदेव ने अपना यशस्तिलक लिखा तब तक इस घटना को घटे अर्ध शताब्दी से अधिक बीत चुकी थी, किन्तु पल्लव राज्य की स्मृतियाँ फिर भी शेष थीं । चोलों के आधिपत्य में ) पल्लव सामन्त यत्र-तत्र राज्य कर रहे थे ।
२८. पांचाल
उत्तरप्रदेश का रुहेलखण्ड प्राचीन पंचाल देश कहलाता था । यशस्तिलक में इसके दो स्थानों पर उल्लेख आये हैं । ६
२६. पाण्डु या पाण्ड्य
पाण्डु या पाण्ड्य का उल्लेख दो बार हुआ है । सोमदेव ने लिखा है कि पाण्ड्य नरेश सुन्दर मध्यमणिवाला मोतियों का हार उपहार में लेकर यशोधर
६६. प्रयागदेशेषु सिंहपुरे सिंहसेनो नाम नृपति: । ६७. पल्लवी नितम्बस्थलो खेलनकुरंग: । - पृ० ३४ पल्लव लघुकेली रसमपेहि । - पृ० १८७ पल्लवर मणीकृत विरहखेद । - पृ० १८८ ६८ पृ० ३६६, ४६६
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पृ० ३४५ उत्त०
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