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वह कौशेय के वस्त्र उपहार में जनपदों में गिना जाता था । नहीं दी है ।
१६. गिरिकूट पत्तन
गिरिकूट पत्तन का उल्लेख एक कथा के प्रसंग में हुआ है। वहां विश्व नाम का राजा था । उसके पुरोहित का नाम विश्वदेव था । विश्वदेव के नारद नामक पुत्र हुआ । नारद और डहाल के पुरोहित क्षीरकदम्ब के पुत्र पर्वत की शिक्षादक्षा एक साथ हुई थी । सोमदेव को सूचनानुसार पुराणों के नारद मुनि और पर्वत यही हैं। इस प्रसंग से लगता है गिरिकूट पत्तन डहाल के आसपास रहा होगा । ४
यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन
लाया था । 23 कौशल बुद्धकालीन षोडश महासोमदेव ने इस तरह की कोई विशेष जानकारी
२०. चेदि
यशस्तिलक में चेदि जनपद का उल्लेख दो बार हुआ है। संस्कृत टीकाकार ने एक स्थान पर चेदि को कुण्डिनपुर तथा दूसरे स्थान पर डहाल ६ देश कहा है ।
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चेदि मध्यदेश का एक महत्त्वपूर्ण जनपद था ।
२१. चेरम
चेरम का उल्लेख दो बार हुआ है । *७ केरल और चेरम एक ही जनपद के नाम थे ।
२२. चोल
यशस्तिलक में चोल का उल्लेख चार बार हुआ है । संस्कृत टीकाकार ने चोल को एक प्रसंग में मंजिष्ठादेश - कहा है तथा एक अन्य स्थान पर सभंग
५३. कौशेयैः कौशलेन्द्रः । पृ० ४७०, ० ६, क० १५
५४. गिरिकूट पत्तनवसते विंश्वनाम्नो विश्वंभरापतेः । पृ० ३५ ३, उत्त०
५५. हे चेदीश कुण्डिनपुरपते । पृ० १८८, सं० टी०
५६. चैद्यो नाम डाहालदेशः । - ५७. चेरम पर्यट मलयोपकण्ठ ।
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• पृ० ५६८, सं० टी०
पृ० १८७ पल्लवपाडय चोलचेर महर्म्यविनिर्माण । - पृ० ५६५
५८. दूताः केरल चोलसिंहलशक ।
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पृ० ४६६, चोलश्च मंजिष्ठा देशभूप: । - सं० टी०
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