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________________ २७२ यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन सीमाओं की जानकारी नहीं मिलती । सोमदेव ने काशी के घर्षण नामक राजा, उसके उग्रसेन नामक सचिव तथा पुष्प नामक पुरोहित से सम्बन्धित एक कथा दी है | ४४ १३. कीर यशस्तिलक के संस्कृत टीकाकार ने कीर का अर्थ कश्मीर किया है । ४५ कीर देश का स्वामी उपहार में कश्मीर अर्थात् केसर भेजता है । १४६ वर्तमान में कीर की पहचान पंजाब की कुल्लू वेली से की जाती है । १४. कुरुजांगल यह कुरु देश का एक भाग था । सोमदेव ने कुरुजांगल ( ९८।७, ० ६, क० २० ) तथा केवल जांगल नाम ( आ० ७, क० २८ ) से इसका उल्लेख किया है । हस्तिनापुर इस प्रदेश की प्रसिद्ध नगरी थी । सोमदेव ने इसका दो बार उल्लेख किया है । १५. कुन्तल संस्कृत टीकाकार ने कुन्तल का अर्थ पूर्व देश किया है ।४७ उत्तर कनारा जिले के बनवासी नामक प्रमुख नगर के चारों ओर का प्रदेश कुन्तल कहा जाता था । बनवासी के कदम्बों के अधीन प्रदेशों में उत्तर कनारा तथा मैसूर, बेलगांव और धारवाड़ के भाग सम्मिलित थे । ४ उत्तरकालीन कदम्बों के शिलालेखों में कदम्ब वंश के पूर्वज को कुन्तल देश का शासक बतलाया गया है । अन्यत्र कुन्तल के अन्तर्गत अपेक्षाकृत विस्तृत प्रदेश बतलाया है। नीलगुण्ड प्लेट में अंकित नीचे लिखे श्लोक में उत्तरकालीन चालुक्य सम्राट् जयसिंह द्वितीय का वर्णन है । उनका दूसरा नाम मल्लिकामोद था और वह कुन्तल देश के शासक थे, जहाँ कृष्णवर्णा नदी बहती थो । विख्यात कृष्णवर्णे तैलस्ने होपलब्धसरलत्वे । कुन्तलविषये नितरां विराजते मल्लिकामोदः ॥ ४४. वही ४५. कीरनाथ: : काश्मीरदेशाधिपः । - पृ० ४७० ४६. काश्मीरैः कीरनाथः । -वही ४७. कुन्तलकान्तानां पूर्वदेशस्त्रीणाम् । - पृ० १८८ ४८. सरकार - इण्डियन हिस्टॉ० क्वा०, जिल्द २२, पृ० २३३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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