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यशस्तिलककालीन भूगोल
६. कलिंग
यशस्तिलक में कलिंग का उल्लेख कई बार हुआ है । संस्कृत टीकाकार ने इसे उत्कल देश और दक्षिण समुद्र तथा सह्य और विन्ध्य पर्वत के मध्य का भाग बताया है ।
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कलिंग अच्छे किस्म के हाथियों के कलिगाधिपति ने उपहार में हाथी भेंट किये 35
सोमदेव ने सुदत्त को कलिंग के महेन्द्र पर्वत का अधिपति बताया है तथा महेन्द्र पर्वत को हाथियों की भूमि कहा है । 33
समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति में महेन्द्र पर्वत का पहाड़ी राज्यों में उसने कलिंग की भी विजय की थी । में है । ४०
१०. क्रथकैशिक
क्रथकैशिक को संस्कृत टीकाकार ने विराट देश बताया है । ४९ विराट वर्त मान जयपुर और अलवर के आसपास का क्षेत्र कहलाता था । प्राचीन विदर्भ क्रथकैशिक कहलाता था ।
लिए प्रसिद्ध था । यशोधर के लिए
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११. कांची
कांचो को यशस्लिक के टोकाकार ने दक्षिण समुद्र के तट का देश कहा है । ४२
प्राचीन पल्लव को कांची या कांचोवरम् कहते थे ।
१२. काशी
काशी का उल्लेख सोमदेव ने जनपद के रूप में किया है। जनपद का नाम काशी था और वाराणसी उसको राजधानी थी । ४३ यशस्तिलक से काशी की
३७. उत्कलानां च देशस्य दक्षिणस्यार्णवस्य च ।
सह्यस्य चैव विन्ध्यस्य मध्ये कालिंगजं वनम् ॥ - १० २६१ सं० टी० ३८. अवजगति कलिंगाधीश्वरस्त्वां करीन्द्रः । - १० ४६६
३६. पृ० २३५-३६, उत्त०
४०. सरकार - सेलेक्टेड इंस्क्रिप्शन, पृ० २५६ ४१. क्रथकैशिको विराटदेशः । - पृ० ३७७ सं० टी० ४२. कवीनाम दक्षिणसमुद्रतटदेशः । - पृ० ५६८ ४३. काशिदेशेषु वाराणस्याम् । पृ० ३६० उत्त०
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उल्लेख है । दक्षिण के यह वर्तमान गंजम जिले
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