________________
२६२
यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन
यन्त्रपुत्तलिकाएँ
यन्त्रधारागृह में यान्त्रिक पुत्तलिकाओं का विन्यास किया गया था। ये पुतलिकाएँ दो प्रकार की थीं- ( १ ) पवन कन्यकाएं, (२) मेघपुरन्ध्रियाँ ।
पवनकन्यकाएं चमर ढोर रही थीं, जिससे उत्पन्न हुए मन्द मन्द पवन द्वारा संभोगक्रीड़ा से थकी हुई सीमन्तिनियों का मन आनन्दित हो रहा था ।"
૪
मेघपुत्तलिकाओं का विन्यास यन्त्रधारागृह में यहाँ-वहाँ कई स्थानों पर किया गया था । उनके स्तनरूप कलशों से पानी झरता था, जिसमें स्नान किया जा सकता था ।
२५
यन्त्रधारागृह के अतिरिक्त अन्य प्रसंगों पर भी यान्त्रिक पुत्तलिकाओं के उल्लेख आये हैं । महादेवी अमृतमती के पलंग के समीप व्यजनपुत्रिकाएँ बनी थीं । ये पुत्रिकाएँ पंखा झलती रहती थीं । २६ उज्जयिनी के वर्णन के प्रसंग में भी व्यजनपुत्रिकाओं का उल्लेख है । शिप्रा का शीतल पवन पंखा झलने वाली पुत्तलिकाओं को व्यर्थ बना देता था । २७ ताम्बूलवाहिनी पुत्रिका का भी एक प्रसंग में उल्लेख आया है । २८
भोजदेव ने अनेक प्रकार की यान्त्रिक पुत्तलिकाओं का विधान बताया है । ये पुतलिकाएँ हस्तावलम्बन, ताम्बूलप्रदान, जलसेचन, प्रणाम, दर्पण दिखाना, वीणा बजाना आदि कार्य करती थीं । २९
यन्त्रat
यन्त्रधारागृह का सबसे बड़ा आकर्षण वहाँ की यन्त्रस्त्री थी, जिसके दोनों हाथ छूने पर नखाग्रों से, स्तन छूने पर दोनों चूचुकों से, कपोल छूने पर दोनों नेत्रों से, सिर छूने पर दोनों कर्णावतंसों से, कटि छूने पर करधनी की डोरियों से तथा त्रिवली छूने पर नाभि से चन्दनचर्चित जल की शीतल धाराएं फूट पड़ती थीं -
२४. पवनकन्यकोड्डमर चामरानिल विनोद्यमानसुरतश्रान्तसीमन्तिनीमानसम् ।
Jain Education International
२५.
पयोधरपुरंधिकास्तनकलशविधीयमानमज्जनावसरम् । - वही ५३१
२६. उपान्तयन्त्रपुत्रिको त्तिप्यमानव्य जनपवनापनीयमानसुरतश्रमः । - पृ० ३७ उत्त० २७. वृथा रतिषु पोराणां यन्त्रन्यजनपुत्रिका । -सं० पू० २०५
२८. संचारिममकन्यका सोत्तं सितमुखवासताम्बूलकपिलिके । - २६ उत्त०
२६. करग्रहणताम्बूलप्रदानजलसेचनप्रणामादि ।
आदर्शप्रतिलोकनवीणावाद्यादि च करोति ॥ - समरांगणसूत्रधार ३१ । १०४
-सं० पू० ५३१
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org