________________
ललित कलाएं और शिल्प-विज्ञान
यन्त्रवानर
यन्त्रधारागृह में एक ओर लतागृह में यन्त्रवानरों को रचना की गयी थी । उनके मुंह से पानी निकल रहा था, जिससे अभिमानिनी स्त्रियों के कपोलों की तिलकपत्र रचना धुली जा रही थी । भोज ने भी हिमगृह में वानर मिथुन की रचना करने का विधान बताया है
१२
२०
।
यन्त्रदेवता
रचना की
यत्रधारागृह में विविध प्रकार के यान्त्रिक जलदेवताओं की गयी थी । उनका विन्यास इस तरह किया गया था, जिससे वे जलकेलि में परस्पर झगड़ते हुए से प्रतीत होते थे । वहीं पास में कलहप्रिय नारद की हर्षोन्मत्त अवस्था का यन्त्र था । निकट ही मरीचि आदि सप्तर्षियों की यान्त्रिक पुत्तलिकाएं थीं । उनके मुँह से निविड़ नीरप्रवाह निकल रहा था और विलासिनी स्त्रियों को जंघाओं से टकरा रहा था । सोमदेव ने इस समूचे दृश्य को कल्पना के निम्नलिखित धागे में पिरोया है
'जलकेलि करते-करते जलदेवता आपस में झगड़ने लगे । कलह देख कर आनन्दित होने के स्वभाव के कारण नारद उस झगड़े को देख कर हर्षोन्मत्त हो नाचने लगे और उस नृत्य को देख कर सप्तर्षियों की मण्डली इतनी खुश हुई कि हंसी में मुँह से फेन के फब्बारे फूट पड़े और कामिनियों की जाँघों से आकर लगे ।''
२१
-
२६१
यन्त्र वृक्ष
यन्त्रधारागृह में यन्त्रवृक्ष की रचना की गयी थी । उसके स्कन्ध पर बनी हुई देवियाँ हाथों से जल उछाल रही थीं। यह जल वल्लभाओं के अवतंस किसलयों से आकर टकराता था, जिससे उनमें ताजगी बनी हुई थी । २२ भोज ने भी यन्त्रवृक्षों का विधान बताया है ।
२३
१६. विलासवल्लरीवनवानरान नोद्गीपानीयापनीयमानमानिनीकपोलत लतिलकपत्रम् । -सं० पू० ५३०
२०. मिथुनैश्च वानराणां जम्पक निव है श्चानेकविधैः । - समरांगणसूत्रधार ३१।१४६ २१. तुमुलजल केलिकल हावलोकनोन्मदनारदोत्तालताण्डवाडम्बरितशिखण्डिमण्डली
निष्ठयत निविडनीरप्रवाह विडम्ब्यमान विलासिनीजघनम् । सं० पू० ५३०
c
२२. कृतकनाकानोक हस्कन्धा सीनसुरसुन्दरी हस्तोदस्तोदकापाद्यमानवल्लभावतंसकिस -
लयाश्वासम् । - सं० पू० ५३१
२३. कल्पतरुभिर्विचित्रैः । - समरांगण सूत्रधार, ३१।१२८
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org