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यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन थे।"बाणभट्ट ने भी कादम्बरी के हिमगृह में स्वर्णकमलिनियों से खेलते हुए करि-कलभों का वर्णन किया है।
समरांगणसूत्रधार में भोज ने भी यान्त्रिक गजों की रचना का विधान किया है। भोज ने लिखा है कि जलक्रीड़ा करते हुए ऐसे करि-मिथुन की रचना करना चाहिए जो संड से परस्पर जल के सीकर उछाल रहे हों तथा सीकरों के आनन्द के कारण जिनके नेत्र मुद्रित हो गये हों। यन्त्रमकर
यन्त्रधारागृह में यन्त्रमकरों की रचना की गयी थी। इनके मुंह से निकलने वाले झरनों के फुहार उड़कर कामिनियों के स्तन-कलशों पर पड़ते थे जिससे उनका चन्दनलेप आर्द्र बना हुआ था।"
भोज ने लिखा है कि कृत्रिम शफरी, मकरी तथा अन्य जलपक्षियों से युक्त कमलवापो बनाना चाहिए।
हेमचन्द्र ने यन्त्रधारागृह में वेदी पर बने हुए मकरमुखों से पानी निकलने का वर्णन किया है ।" स्वयं सोमदेव ने एक अन्य प्रसंग में मकरमुखी प्रणालों का उल्लेख किया है ( करिमकरमुख मुच्यमानवारिभरिताभोगासु, सं० पू० ३९ ) । प्राचीन वास्तुशिल्प में मकर मुखी प्रणालों का खूब चलन था। बाण ने प्रदोष के वर्णन में मकर मुखी प्रणाल का उल्लेख किया है। सारनाथ के संग्रहालय में इस तरह का एक मकरमुखी प्रणाल सुरक्षित है। ११. करटिकरविकीर्यमाणसीकरासारसूत्रितांगनालकमुक्ताफलाभरणम् ।
-सं० पू० पृ० ५३० १२ क्वचित् क्रीडितकृत्रिमकरिकलभयूथकाकुल प्रियमाणाः कांचनकमलि निकाः।
-कादम्बरी ११६, उद्धृत-डॉ. अग्रवाल-कादम्बरी : एक सांस्कृतिक अध्ययन,
पृ० ३७३ १३. कार्यापयस्मिन् करिणां मिथुनान्यभितोऽम्बुकेलियुक्तानि । ___अन्योन्यपुष्करोज्झितसीकरमयपिहितनयनानि ॥-समरांगणसूत्रधार ३१११३४ १४. मकर मुखमुक्तनिझरनीहारोल्लास्यमानकामिनीकुचकुम्भचन्दनस्थासकम् ।
-स० पू० पृ०५३० १५. कृत्रिमशफरीमकरीपक्षिभिरपि चाम्बुसम्भवैयुक्ताम् ।
कुर्यादम्भोजवती वापीमाहार्ययोगेन ।। -समरांगणसूत्रधार ३११६३ १६. वेहअ-मया-मुहाहिअ आ-मूल-सिरंच फलिह-थम्भाओ।
वारोत्तरगयाओं नीहरिया वारि-धाराओ ।। -कुमारपालचरित ४।२७ १७. अग्रवाल - हर्षचरित, पृ० १७ १८. वही, पृ० १७, फलक १, चित्र ६
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