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ललित कलाएं और शिल्प-विज्ञान
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है। सम्राट् जब यन्त्रधारागृह में पहुंचे तो उन्होंने देखा कि चारों ओर से निकल रहे दीर्घ जलप्रवाह से सारा वन-प्रान्त जलमय हो रहा है।
यन्त्रव्याल
यन्त्रधारागृह में यन्त्र नलघर की तरह विविध प्रकार के यन्त्र-व्यालों को भी रचना की गयी थी। इन हिंस्र जन्तुओं के मुंह से वमन होते हुए जल की घरघराहट से भवन-मयूर नाचने लगते थे। विविध व्याल का अर्थ श्रुतदेव ने कृत्रिम गज, सर्प, सिंह, व्याघ्र, चीता आदि किया है। कादम्बरी में चंद्रकान्त के प्रणाल से निकलने वाले निर्झर के शब्द से प्रमुदित होकर शब्द करते हुए मयूरों का वर्णन आया है। भोज ने भी लिखा है कि यन्त्रधारागृह में नृत्य करते हुए मयूरों से मंडित प्रदेश होना चाहिए।' यन्त्रहंस
यन्त्रधारागृह में चन्द्रकान्तमणियों के प्रणालों की रचना की गयी थी। उनसे झरझर पानी निकल रहा था जिससे क्रोड़ा-हंस संतुष्ट हो रहे थे। बाण ने ठीक यही दृश्य कादम्बरी में प्रस्तुत किया है - यन्त्रधारागृह में एक ओर चन्द्रकान्तमणि की टोटो से झरना झरता था और बीच में पुछार मोरों को मिली हुई ग्रोवाओं से निर्मित फवारे की जलधाराएं छूट कर फुहार उत्पन्न करती थीं। शिशिरोपचारों के वर्णन में यन्त्रमय कलहंसों की पंक्ति से जलधार छूटने का भी उल्लेख है ( उत्कोलित यन्त्रमयकलहंसपंक्तिमुक्ताम्बुधारेण )। यन्त्रगज
यन्त्रधारागृह में यन्त्रगज की रचना की गयी थी। उसको सूंड से जलसीकर बरस कर स्त्रियों के अलकजाल पर मुक्ताफल की शोभा उत्पन्न कर रहे ४. रेल्लन्ता वणभागा तमो पलोट्टा जवा जलाणोघा ।
वामाउ दक्षिणाओ समुद्धतो पच्छिमाहिन्तो॥ -कुमारपालचरित ४।२६ ५. विविधव्यालवदनविनिर्गलज्जलधाराध्वनितलयलास्यमानभवनांगणबहिणम् । वही,५३० ६. विविधा नानाप्रकारा ये व्यालाः कृत्रिमगजसर्पसिं.व्याघ्रचित्रकादयः।-सं० टी० ७. शशिमणिपणालनिझरप्रमोदमुखरमयूररवरम्ये । ___उद्धृत, डॉ. अग्रवाल - कादम्बरी : एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० ३७२ ८. नृत्यद्भिः परमगुणेः शिखण्ड भिमण्डितोद्देशम् । -समरांगणसूत्रधार ३१११२७ ६. चन्द्रकान्तमयप्रणालविलस्रवत्स्रोतः संतय॑माणविनोदवारलम् । - वरटा हंसिनी, ___ सं० पू० पृ० ५३० १०. डॉ० अग्रवाल - कादम्बरी : एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० ३७६
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