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परिच्छेद चार
यन्त्र शिल्प
यशस्तिलक में अनेक प्रकार के यान्त्रिक उपादानों का उल्लेख है । उनमें से अधिकांश यन्त्रधारागृह के प्रसंग में आये हैं तथा कुछ अन्य प्रसंगों पर । यत्रारागृह के प्रसंग में यन्त्रमेघ, यन्त्रपक्षी, यन्त्रपशु, यन्त्रव्याल, यन्त्रपुत्तलिका, यन्त्रवृक्ष, यन्त्रमानव तथा यन्त्रस्त्री का उल्लेख है । अन्य प्रसंगों में यन्त्रपर्यंक तथा यन्त्रपुत्रिकाओं का उल्लेख है । विशेष वर्णन इस प्रकार है -
यन्त्रजलधर
गृह में यन्त्र जलधर या यान्त्रिक मेघ की रचना की गयी थी । उससे झरझर पानी बरस रहा था और स्थलकमलिनी की क्यारी सिंच रही थी ।
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यन्त्र वारागृह में मायामेघ या यन्त्रजलधर का निर्माण प्राचीन वास्तुकला का एक अभिन्न अंग था। भोज ने शाही घरानों के लिए पाँच प्रकार के वारिगृहों का विधान किया है, जिनमें प्रवर्षण नाम के एक स्वतन्त्र गृह का उल्लेख है । इस गृह में आठ प्रकार के मेघों की रचना की जाती थी तथा उन मेघों में से हजार-हजार धाराओं के रूप में जल बरसता दिखाया जाता था ।
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सोमदेव के पूर्व बाणभट्ट ने भी यन्त्रमेघ या मायामेघ का एक सुन्दर दृश्य प्रस्तुत किया है - मायामेघ के पीछे से झांकता हुआ रंग-विरंगा चित्रलिखित इन्द्रधनुष, सामने से उड़ती हुई वलाकाओं की पंक्तियों और उनके मुखों से निकलती हुई सहस्रों धाराएं, इन सबकी सम्मिलित छटा ऐसी प्रतीत होती थी मानो आकाश में मेघों की बदलचल हो रही हो ।
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हेमचन्द्र ने यन्त्रधारागृह में चारों ओर से उठते हुए जलौच का वर्णन किया
१.
पर्यन्तयन्त्रजलधरवर्षाभिषिच्यमानस्थलकमलिनीकेदारम् । सं० पू० ५३०
२. धारागृहमेकं स्यात्प्रवर्षणाख्य ततो द्वितीयं च ।
प्राणालं जलमग्नं नद्यावर्त तथान्यदपि ||
जलदकुलाष्टकयुक्तं पूर्ववदन्यद् गृहं समारचयेत् ।
वर्षद्वारा निकरै: प्रवर्षणाख्यं तदाप्नोति ॥ - समरांगण सूत्रधार ३१।११७, १४२ ३. स्फटिकबलाकावलीवान्तवारिधारालिखितेन्द्रायुधाः संचार्यमाणाः मायामेघमालाः । उद्धृत - डॉ० अग्रवाल कादम्बरी : एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० ३७२
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