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ललित कलाएँ और शिल्प - विज्ञान
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दीर्घिका का विस्तृत वर्णन किया है। डॉक्टर वासुदेवशरण अग्रवाल ने इस सामग्री का विस्तार से विवेचन किया है । ६४
मुगलकालीन राजप्रासादों में जो दीर्घिका बनायी जाती थी, उसका उर्दू नाम नहरे विहिश्त था । हारू रशीद के महल में इस प्रकार की नहर का उल्लेख आता है । देहली के लाल किले के मुगल महलों की नहरे विहिश्त प्रसिद्ध है ।
वस्तुतः प्राचीन राजकुलों के गृह वास्तु की यह विशेषता मध्यकाल में भी जारी रही । विद्यापति ने कीर्तिलता में प्रासाद का वर्णन करते हुए क्रीड़ाशैल, धारागृह, प्रमदवन तथा पुष्पवाटिका के साथ कृत्रिमनदी का भी उल्लेख किया है । यह भवन दीर्घिका का ही एक रूप था ।
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दीर्घिका का निर्माण केवल भारतवर्ष में ही नहीं पाया जाता, प्रत्युत प्राचीन राजप्रासादों को वास्तुकला की यह ऐसी विशेषता थी जो अन्यत्र भी पायी जाती है । ईरान में खुसरू परवेज़ के महल में भी इस प्रकार की नहर थी । कोहे विहितून सेकसरे शोरीं नामक नहर लाकर उसमें पानी के लिए मिलायी गयी थी । ट्यूडर राजा हेनरी अष्टम के हेम्टन कोर्ट राज प्रासाद में इसे लांग वाटर कहा गया है । यह दीर्घिका के अति निकट है ।
प्रमदवन
-
ऋतु
में
यशस्तिलक में प्रमदवन का दो प्रसंगों में वर्णन है। मारिदत्त युवतियों के साथ प्रमदवन में रमण करता था ( ३७-३८ ) । सम्राट् यशोधर ग्रीष्म मध्याह्नका समय मदनमदविनोद नामक प्रमदवन में बिताता था ( ५२२-३८ ) । प्रमदवन राजप्रासाद का महत्त्वपूर्ण अंग होता था । यह प्रासाद से सटा हुआ बनता था। इसमें क्रोड़ा विनोद के पर्याप्त साधन रहते थे । अवकाश के क्षणों में राज्य परिवार के सदस्य इसमें मनोविनोद करते थे । सोमदेव ने इसका विस्तार से वर्णन किया है ।
प्रमदवन के अनेक महत्त्वपूर्ण अंग थे - उद्यान -तोरण, क्रीड़ाकुत्कील खातवलय, जलकेलिवापिका, कुल्योपकण्ठ, मकरध्वजाराधनवेदिका, वनदेवताभवन, कदलीकानन, विहारधरा, सरित्सारणो, छायामण्डप तथा यन्त्रधारागृह । यन्त्रधारागृह के विन्यास का विस्तृत वर्णन है ।
६४. हर्षचरित : एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० २०६ कादम्बरी : एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० ३७१
६५. कीर्तिलता, पृ० १३६
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