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यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन
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जल तरंगों पर कर्पूर
लेप किया गया था,
मरकत मणि का बना था । भित्तियाँ स्फटिक की थीं। 23 सीढ़ियाँ स्वर्ण की बनायी गयी थीं । २४ तटप्रदेश मुक्ताफल के बने थे । ५५ जल को कहीं हाथी, मकर इत्यादि के मुँह से झरता हुआ दिखाया गया था । ६ का छिड़काव किया गया था । ७ किनारों पर चन्दन का जिससे लगता था मानो क्षीर-सागर का फेन उसके किनारे आगे जल के प्रवाह को रोक कर पुष्करणी बनायी गयी थी, जिसमें कमल खिले थे । उसके आगे गंधोदक कूप बनाया गया था जिसमें कस्तूरी और केसर से सुवासित शीतल जल भरा था ६० कुछ आगे जल को मृणाल की तरह एकदम पतली धारा के रूप में बहता दिखाया गया था ।
पर जम गया है।
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आगे यान्त्रिक शिल्प के विविध उपादान - यन्त्र वृक्ष, यन्त्रपक्षी, यन्त्र पशु, यन्त्र पुत्तलिका आदि बने थे जिनसे तरह-तरह से पानी झरता हुआ दिखाया गया था । यन्त्रशिल्प प्रकरण में इनका विशेष विवरण दिया गया है ।
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अन्त में दीर्घिका प्रमदवन में पहुँची थी जहाँ विविध प्रकार के कोमल पत्तों और पुष्पों से पल्लव और प्रसूनशय्या बनायी गयी थी । ६३
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सोमदेव के इस वर्णन की तुलना प्राचीन साहित्य और पुरातत्त्व की सामग्री से करने पर ज्ञात होता है कि दीर्घिका निर्माण की परम्परा भारतवर्ष में प्राचीन काल से लेकर मुगलकाल तक चली आयो । प्राचीन साहित्य में इसके अनेक उल्लेख मिलते हैं । कालिदास ने रघुवंश में ( १६।१३ ) दीर्घिका का वर्णन किया है । बाणभट्ट ने हर्ष के राजमहल के वर्णन में हर्षचरित में और कादम्बरी में
५२. मरकतमणिविनिर्मितमूलासु । - पृ० ३८ पू०
५३. कंकेल कोपल सम्पादितभित्तिभंगिकासु । वही कांचनोपचितसोपानपरम्परासु । -वही
५४.
५५ मुक्ताफलपुलिन पेशलपर्यन्तासु । -वही
५६. करिमकर मुखमुच्यमानवारिभरिताभोगासु । - वही ३६
५७. कपूरपारीदन्तुरिततरंगसंगमासु (-वही
५८. दुग्धोद धित्रेला स्विव चन्दनधवलासु | वही ५६. वनस्थलीष्विव सकमलास | वही
६०. मृगमदा मोदमेदुरमध्यासु सकेसरासु । - वही
६१. विरहिणी शरीरयष्टिष्विव मृणालवलयनीषु । वही ६२. विविधयन्त्रश्लाघनीषु । - वही
६३. विचित्रपल्लवप्रसूनफल स्फास धिंकासु । - वही
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