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________________ ललित कलाएं और शिल्प-विज्ञान २५५ कपिलिका रखी थी। तुहिनतरु के बने वलीकों पर उपकरण टांगे गये थे।४९ मणि के पिंजड़े में शुक-सारिका बैठी कामकथा में लीन थी। उपर्युक्त वर्णन में आये कूर्चस्थान, संचारिमहेमकन्यका, तथा वलीक आदि शब्द विशेष महत्त्व के हैं। कूर्चस्थान का अर्थ श्रुतसागर ने संभोगोपकरणस्थापनप्रदेश किया है । संचारिमहेमकन्यका के विषय में यन्त्रशिल्प प्रकरण में विचार किया गया है। इस प्रकार की यान्त्रिक पुत्तलिकाओं के निर्माण की परम्परा सोमदेव के पूर्व से चली आ रही थी और बाद तक चलती रही। वलीक शब्द का अर्थ श्रुतसागर ने पट्टिका किया है । यह अर्थ पर्याप्त नहीं है । वृक्षों पर उपकरण टांगने की परम्परा का उल्लेख कालिदास ने भी किया है। जब शकुन्तला पतिगृह को जाने लगी तब वृक्षों ने उसे समस्त आभूषण दिये (शाकुन्तल, अ० ४)। सम्भवतया सोमदेव का उल्लेख इसी ओर संकेत करता है। कर्पवृक्ष के वलीक बनाये गये थे, जिनमें बीच-बीच में पुष्पमालाएं टंगी थीं और उपकरण टेंगे थे। दोघिका दीपिका का उल्लेख यशस्तिलक में कई बार हुआ है । दो स्थानों पर विशेष वर्णन भी है : जलक्रीड़ा के प्रसंग में प्रथम आश्वास में और यन्त्रधारागृह के वर्णन में तृतीय आश्वास में । दीपिका प्राचीन प्रासाद-शिल्प का एक पारिभाषिक शब्द था। यह एक प्रकार की लम्बी नहर होती थी जो राजप्रासादों में एक ओर से दूसरी ओर दोड़ती हुई अन्त में प्रमदवन या गृहोद्यान को सींचती थी। बीच-बीच में जल के प्रवाह को रोक कर पुष्करणो, गन्धोदककूप, क्रीड़ावापी इत्यादि बना लिये जाते थे। कहीं जल को अदृश्य करके आगे विविध प्रकार के पशु-पक्षियों के मुंह से पानी झरता हुआ दिखाते थे। लम्बी होने के कारण इसका नाम दीपिका पड़ा । सोमदेव ने यशोधर के महल को दीपिका का विस्तृत वर्णन किया है । इसका तलभाग ४८. संचारिमहेमकन्यकासोत्तसितमुखवासताम्बूलकपिलिके ।-वही ४६. तुहिनतरुविनिर्मितवलीकान्तरमुक्त । -वही ५०. मणिपिंजरोपविष्टशुकसारिका ।.-वही ५१. तुहिनतरुविनिर्मितवलीकान्तरमुक्तकुसुमस्रकसौरभाधिवास्यमानसुरतावसानिकोप करणवस्तुनि । -पृ. २६ उत्त० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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