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________________ २५४ sc 3९ नाम दिया है । यह वासभवन सतखण्डा महल का सबसे ऊपरी भाग था । यशोधर अधिरोहिणी ( सीढ़ियों) से चढ़ कर वहाँ गया । सोमदेव का यह उल्लेख विशेष महत्त्व का है । इससे ज्ञात होता है कि दशमी शताब्दी में इतने ऊँचेऊँचे प्रासादों की रचना होने लगी थी। ग्वालियर जिले के चन्देरी नामक स्थान के खण्डित कुषक महल की पहचान सात खण्ड के प्रासाद से की जाती है । मालवा के मुहम्मद शाह ने १४४५ में इसके बनाने की आज्ञा दी थी । वर्तमान में इसके केवल चार खण्ड शेष रहे हैं । सोमदेव ने एक स्थान पर और भी सप्ततल प्रासाद का उल्लेख किया है। यशोधर सभा विसर्जित करके चल कर ( चरणमार्गेणैव, २३) महादेवी के वासभवन में गया था । प्रतिहारपालिका ने द्वार पर क्षण भर के लिए यह कह कर रोक लिया कि अन्य स्त्रीजनासक्ति जान कर महादेवी कुपित हैं । सम्राट् ने अपना प्रणयकोप जाहिर किया तब कहीं उसने रास्ता दिया । हँस कर देहली छोड़ दी और कक्षान्तरों को पार कराती भवन में ले गयी । ४० यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन ४3 इस वासभवन की सुनहरी दीवारों पर यक्षकर्दम का लेप किया गया था और कर्पूर से दन्तुरित किया गया था । ४२ रजत वातायनों पर कस्तूरी का लेप किया गया था, जिससे झरोखे से आने वाली हवा सुगन्धित होकर आ रही थी। स्फटिक की देहली को गाढ़े स्यन्दरस से साफ किया था । ४४ कुंकुम रंगे मरकतपराग से फर्श ( तलभाग ) पर तह देकर अधखिले मालती के फूलों से रंगोली बनायी गयी थी । कालागुरु चन्दन की धूप निरन्तर जल रही थी, जिसके धुएँ से वितान पर्यन्त लटकती मुक्तामालाएं धूसरित हो गयी थीं । ४६ कूर्चस्थान पर फूलों के गुलदस्ते रखे थे । ४७ संचरणशील हेमकन्यका के कन्धे पर ताम्बूल ४५ ३८. सप्ततलप्रासादोपरितनभागवर्तिनि । - ३६. इंडियन चिटेक्चर, भाग २, पृ० ६५ पृ० २६ उत्त० ४०. सप्ततलागाराग्रिमभूमिभागिनि जिनसद्मनि । - पृ० ३०२, उत्त० ४१. संपरिहासं समुत्सृष्टग्रहावग्रहणी । - १०२७, वही ४२. यक्षकर्दमखचितकपू रदलदन्तुरित जातरूपमित्तिनि । ०२८ ४३. मृगमदशकलोपलिप्तरजतवातायन विवर विहर माणसमीरसुरभिते । वही ४४. सान्द्रस्यन्दसंमार्जितामलक देहली शिरसि । -वही ४५. घुसृणरसारुणितमरकतपरागपरिकल्पितभूमितलभागे मनाङ्मोदमानमालतीमुकुलविरचितरंगवलिनि । वही Jain Education International ४६. अनवरतदह्यमानकालगुरुधूपधूमधूसरित बितानपर्यन्तमुक्ताफलमाले । - वही ४७. कूर्चस्थान विनिवेशित प्रसूनसमूह । - पृ० २६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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