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ललित कलाएं और शिल्प-विज्ञान
२५३ सरस्वतीविलासकमलाकर ___ महाराज यशोधर ने रात्रि को जिस प्रासाद में शयन किया उसे सोमदेव ने सरस्वतीविलासकमलाकर नामक राजमन्दिर कहा है। सोमदेव ने इसका विस्तृत वर्णन नहीं किया है। सम्भवतया यह त्रिभुवनतिलक नामक प्रासाद का हो एक भाग था। दिग्वलयविलोकविलास ___दिग्वलयविलोकविलास नामक भवन क्रीड़ा पर्वत की तलहटी में बनाया गया था। सम्राट इस भवन में बैठ कर प्रथम वर्षा का आनन्द लेते थे। परिवार से घिरे३४ महाराज यशोधर जब सेवा में आये सामन्त समाज के साथ वर्षा ऋतु की शोभा का आनन्द ले रहे थे तभी संधिविग्रही ने आकर सूचना दी कि पांचाल नरेश का दुकूल नामक दूत आया है, प्रतिहार भूमि में बैठा है ( ५४९ ) । इस प्रसंग में प्रासाद का तो विशेष वर्णन नहीं है किन्तु वर्षा ऋतु तथा राजनीति सम्बन्धी विवेचन है। करिविनोदविलोकनदोहद
करिविनोदविलोकनदोहद नामक प्रासाद प्रधावधरणि ( गजशिक्षाभूमि ) में बनाया गया था, जिसमें गजविशेषज्ञ आचार्यों के साथ बैठ कर महाराज गजकेलि देखते थे। इस प्रसंग में सोमदेव ने प्रासाद का तो विशेष वर्णन नहीं किया किन्तु गजशास्त्र विषयक महत्त्वपूर्ण सामग्री दी है जिसका अन्यत्र विवेचन किया गया है। आजकल जिस प्रकार स्पोर्ट स स्टेडियम बनाये जाते हैं उसी प्रकार प्राचीन काल में करिविनोदविलोकनदोहद आदि भवनों का निर्माण किया जाता था। मनसिजविलासहंसनिवासतामरस
अन्तःपुर या रनिवास को सोमदेव ने मनसिजविलासहंसनिवासतामरस ३२. सरस्वतीविलासकमलाकरराजमन्दिरम् । - ३५६ ३३. क्रीडाचलमेखलानिलयिनि दिग्वलयविलोकविलासनाम्नि धाम्नि । -पृ० ५४८ ३४ प्रवीरपरिषदपरिवारितः । - वही ३५. समं सेवासमागतसमस्तसामन्तसमाजेन । - वही ३६. वर्षतु श्रियं यावदहमनुभवन् । -- वही ३७. प्रधावधरणिषु करिविनोदविलोकनदोहदं प्रासादमध्यास्य प्रभिन्नकरिकेलोरदर्शम्।
-पृ० ५०५
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