________________
२५२
यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन दायें पैरों की टाप से वे बार-बार धरती खोद रहे थे मानो अपनी विजय परम्पराओं का प्रतिपादन कर रहे हों। उनको हिनहिनाहट से समीपवर्ती सौधों के उत्संग गूंज रहे थे ( पृ० ३६८ )।
राजभवन के निकट ही गज तथा अश्वशाला बनाने की परम्परा प्राचीन थी। इसका मुख्य कारण यह था कि प्रातःकाल गज व अश्वदर्शन राजा के लिए मांगलिक माना जाता था। गजवर्णन के प्रसंग में स्वयं सोमदेव ने लिखा है कि जो राजा प्रातःकाल गजपूजन-दर्शन करता है वह रण में कीर्तिशाली तो होता ही है, निःसन्देह सार्वभौम भी होता है। प्रसन्नवदन गज का उषाकाल में दर्शन करने से दुःस्वप्न, दुष्टग्रह तथा दुष्टचेष्टा का नाश होता है ( पृ० ३०० ) ।
राजभवन के निकट गज और अश्वशाला फतेहपुर सीकरी के प्राचीन महलों में आज भी देखी जाती है ।
___ आस्थानमण्डप कालागुरु की सुगन्धित धूप से महक रहा था। फड़फड़ाती ढेरों पताकाएँ आकाश-सागर में हंसमाला-सी लगती थीं। उच्च प्रासाद-शिखर पर माणिक्य जटित कलशों से कान्ति निकल रही थी। फल, फूल और पल्लव युक्त वन्दनवारों के बीच-बीच में कीर-कामिनियां बैठी थीं। बीच-बीच में तार हार लटकाये गये थे। स्फटिक के कुट्टिमतल पर गाढ़ी केशर का छिड़काव किया गया था । कर्पूरधूलि से रंगोली बनायी गयी थी। मरकतमणि की बनी वितदिका पर कमल, मालती, वकुल, तिलक, मल्लिका, अशोक आदि के अधखिले फूलों के उपहार चढ़ाये गये थे। उदीर्ण मणिस्तम्भिका पर सिंहासन सजाया गया था जो कल्पवृक्ष से वेष्ठित सुमेरुशिखर-सा लगता था। दोनों पावों में उज्ज्वल चमर ढोरे जा रहे थे। ऊपर सफेद दुकूल का वितान था। दीवारों में नीचे से ऊपर तक रत्नफलक जड़े थे, जिनमें उपासना के लिए आये सामन्तों के प्रतिबिम्ब पड़ रहे थे।
विविध प्रकार के मणियों से बनी विभिन्न प्रकार की आकृतियों को देख कर डरे हुए भूपालबालक ( राजकुमार ) कंचुकियों को परेशान कर रहे थे। लगता था जैसे इन्द्र को सभा हो। याष्टीक सैनिक निकटवर्ती सेवकों को डाँटडपट कर निर्देश दे रहे थे : अपनी पोशाक ठोक करो, धन और जवानी के जोश में बको मत, बिना अनुमति किसी को घुसने न दो, अपनी-अपनी जगह सँभल कर रहो, भीड़ मत लगाओ, आपस में फिजूल की बकवास मत करो, मन को न डुलाओ, इन्द्रियों को काबू में रखो, एकटक महाराज की ओर देखो कि महाराज क्या पूछते हैं, क्या कहते हैं, क्या आदेश देते हैं, क्या नयी बात कहते हैं ( ३७१-७२)।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org