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________________ यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन २४४ 3 मंडप में कर्पूर की सफेद धूलि से रंगावलि बनाई गयी थी। महल में एक स्थान पर मणि लगाकर स्थायी रूप से रंगावलि ४ ५ थी । अन्यत्र कुंकुम रंगे मरकत पराग से फर्श पर तह देकर अर्घाखिले मालती के फूलों से रंगावलि बनाई गयी थी । एक अन्य प्रसंग में भी पुष्पों द्वारा रचित रंगावलि का उल्लेख है । ६ राजमहिषी के अंकित की गयी ફ रंगावलि बनाने के लिए पहले जमीन को पतले गोबर से लीपकर अच्छी तरह साफ कर लिया जाता था । इसे परभागकल्पन कहते थे । इस तरह साफ की गयी जमीन पर सफेद या रंगीन चूर्ण से रंगावलि बनाई जाती थी । आजकल इसे रंगोली या अल्पना कहा जाता है । प्रायः प्रत्येक मांगलिक अवसर पर रंगावलि बनाने का प्रचलन भारतवर्ष में अब भी है । चित्रकला में रंगावलि को क्षणिक चित्र कहते हैं । क्षणिक-चित्र के दो प्रकार होते हैं - धूलि चित्र और रस-चित्र । चित्रकर्म सोमदेव ने एक विशेष संदर्भ में प्रजापतिप्रोक्त चित्रकर्म का उल्लेख किया ।" इसका एक पद्य भी उद्धृत किया है श्रमणं तेजलिप्तांगं नवभिर्भक्तिभिर्युतम् । यो लिखेत् स लिखेत्सर्वां पृथ्वीमपि ससागराम् श्रुतसागर ने यहाँ श्रमण का अर्थ तीर्थंकर और तेजलिप्तांगं का अर्थ करोड़ों सूर्यों की प्रभा के समान तेजयुक्त किया है तथा मधुमाधवी के अनुसार नवभक्तियों को इस प्रकार गिनाया है // १० ३. अनल्पकर्पूरपरागपरिकल्पितरं गावलि विधानम् । – पृ० ३६६ ४. चरणनखस्फुटितेन रंगवल्लीमणीन् इव असहमानया । पृ० २४ उत्त० ५. घुसृणरसारुणितमरकतपरागपरिकल्पितभूमितलभागे मनाग्मोदमानमालती मुकुलविरचितरंगवलिनि । पृ० २८ उत्त० ६. पर्यन्तपादपैः संपादितकुसुमोपहारः प्रदत्तरं गावलि | - पृ० १३३ ७. रंगवल्लीषु परभागकल्पनम् । -१० २४७ उत्त ० ८. वी० राघवन् - संस्कृत टेक्स्ट श्रान पेंटिंग, इंडियन हिस्टॉरिकल क्वार्टरली, जिल्द ६ | Jain Education International पृ० ६०५-६ ६. प्रजापतिप्रोक्ते च चित्रकर्मणि । पृ० ११२ उत्त० १०. पृ० वही । मुद्रित प्रति का 'तेललिप्तांगं' और 'भित्ति' पाठ गलत है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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