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ललित कलाएँ और शिल्प-विज्ञान
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५. यक्षमिथुन ( यक्षमिथुनसनाथा, २४६।२१ उत्त० )
तीर्थंकरों की पूजा-अर्चा के लिए यक्षमिथुनों के आने का शास्त्रों में बहुत जगह उल्लेख है । सम्भवतया ऐसे ही किसी प्रसंग में यक्षमिथुन चित्रित किये गये थे। प्रतीक-चित्र - जैन साहित्य में ऐसे उल्लेख आते हैं कि तीर्थंकरों के गर्भ में आने के पहले उनकी माता सोलह स्वप्न देखती हैं। श्वेताम्बर परम्परा में चौदह स्वप्नों का वर्णन आता है । सोमदेव ने जिस मन्दिर का उल्लेख किया है उसमें ये सोलह स्वप्न भिति पर चित्रित किये गये थे -
१. ऐरावत हाथी ( संनिहितैरावता, २४६।२४ उत्त० ) २. वृषभ ( आसन्नसौरभेया, २४६।२४ उत्त० ) ३. सिंह ( निलीनोपकण्ठीरवः, २४६।२५ उत्त० ) ४. लक्ष्मी ( रमोपशोभिता, २४६।२५ उत्त० ) ५. लटकती पुष्पमालाएँ (प्रलम्बितकुसुमशरा, २४६।२६ उत्त०) ६.७. चन्द्र, सूर्य ( सविधविधुबुध्नमण्डला, २४७।१ उत्त० ) ८. मत्स्ययुगल ( शकुलीयुगलांकिता, २४७।१ उत्त० ) ९. पूर्णकुम्भ ( पूर्णकुम्भाभिरामा, २४७।२ उत्त० ) १०. पद्मसरोवर ( कमलाकरसेविता, २४७।२ उत्त० ) ११. सिंहासन (प्रसाधितसिंहासना, २४७१३ उत्त० ) १२. समुद्र ( जलनिधिमति, २४७।३ उत्त०) १३. फणयुक्तसर्प (उन्मीलिताहिलोका, २४७।३ उत्त०) १४. प्रज्वलित अग्नि ( प्रत्यक्षहुताशना, २४७।४ उत्त० ) १५. रत्नों का ढेर ( समणिनिचया, २४७।५ उत्त०)
१६. देवविमान (प्रदर्शितदेवालया, २४७।५ उत्त०) रंगावलि या धूलि-चित्र
रंगावलि या धूलि-चित्रों का यशस्तिलक में छह बार उल्लेख हुआ है। राज्याभिषेक के बाद महाराज यशोधर राजभवन को लौट रहे थे। उस समय अनेक लोग मंगल सामग्री जुटाने में लगे थे। किसी कुलवृद्धा ने किसी सेविका . कन्या को डपटते हुए कहा - तत्काल रंगावलि बनाने में जुट जाओ।' आस्थान
२. अकालदेपं दक्षस्व रंगवल्लिप्रदानेषु । -पृ० ३५०
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