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यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन
न्यास से सामाजिकों को आनन्दित किया गया है, जिसमें हस्तपताकाएँ संचालित हो रही हैं तथा आंगिक अभिनय द्वारा नृत्य का आनन्द दृष्टिपथ में अवतरित हो रहा है, ऐसा नृत्य तुम्हारी प्रसन्नता के लिए हो ।
उस अर्थ में कुन्तल पर चेंबर का आरोप तथा पाणि पर पताका का आरोप विशिष्ट है, अन्य अर्थ श्लेष से निकल आते हैं ।
प्रमदारति के पक्ष में
जिसमें केश कम्पित हो रहे हैं, कांची का शब्द हो रहा है, कटाक्षपात द्वारा रति का भाव प्रकट किया गया है, ऊरु और चरण न्यास के विशेष आसन द्वारा रति का आनन्द प्रकट किया गया है, हाथ हिल रहे हैं, अंगहार पर जिसमें दृष्टि गड़ी है, ऐसी प्रमदारति आपको आनन्द प्रदान करे ।
इस पक्ष में ' ऊरुवरणन्यासासनानन्दितम्' तथा 'ईक्षण स्थानीतांगहारोत्सवम्' पदों के अर्थ विशेष बदले हैं ।
सभामण्डप के पक्ष में
जिसमें चंचल वेशों के चँवर ढोरे जा रहे हैं, संचरणशील वारविलासिनी अथवा दासियों की कांची का कलकल शब्द हो रहा है, जिसमें भ्रूक्षेप मात्र से आज्ञा या कार्य निर्देश किया गया है, आसन पर ऊरु और चरणों का न्यास किया गया है, हाथों में ली हुई पताकाएं उड़ रही हैं, तथा जिसमें मन्त्री, पुरोहित, सेनापति आदि राज्यांग का समूह आनन्दित किया गया है, ऐसा सभामण्डप आपकी प्रसन्नता के लिए हो ।
इस पक्ष में 'भ्रूभंगार्पितभाव' तथा 'अंगहार' पद का अर्थ विशेष बदला है । एक अन्य स्थल पर ( पृ० १९६।११, हिन्दी ) पैरों में घुंघुरू बाँधकर नृत्य करने का उल्लेख है | यशोधर के राज्यभवन में नृत्य हो रहा था जिसमें पवन को तरह चंचल हस्त-संचालन और बोच-बीच में घुंघरुओं को मधुर ध्वनि हो रही थी । ७५
नृत्त
ताल और लय के आधार पर किये जाने वाले नर्तन को नृत्त कहते हैं (नृत्तं ताललयाश्रयम् ) । ७६
७५. नृत्यहस्तैरिव परमानचं चल चलन संगतांगसुभगवृत्तिभिर्विविधवर्णविनिर्माणमनोहराडम्बरैरन्तरान्तरमुक्तकलक्वणन्मणिकिंकिणीजालमालाभिः । - १६५।११, हिन्दी
७६. दश० ११६
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