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ललित कलाएं और शिल्पविज्ञान
नृत्त में अभिनय का सर्वथा अभाव होता है। केवल ताल और लय के आधार पर द्रुत, मन्द या मध्यम पादविक्षेप किया जाता है। ताल संगीत में स्वर की मात्रा का तया नृत्त में पादविक्षेप की मात्रा का नियामक होता है। लय नृत्त की गति को तीव्र, मन्द या मध्यम करने की सूचना देता है। इस प्रकार नृत्य और नृत्त के भेदक तत्त्व ये है
१. नृत्य में आंगिक अभिनय रहता है, नृत्त अभिनय शून्य है। २. नृत्य भावाश्रित है, जबकि नृत्त ताल और लय के आश्रित । ३. नृत्य शास्त्रीय पद्धति के अनुसार चलता है, जबकि नृत्त ताल और लय
के आश्रित होकर भी शास्त्रीय नहीं। इसीलिए नृत्य मार्ग ( शास्त्रीय )
कहलाता है तथा नृत्त देशी। ४. नृत्य के उदाहरण 'भरतनाट्यम्,' 'कत्थक' या उदयशंकर के भावनृत्य
हैं । नृत्त के उदाहरण लोकनृत्य हो सकते हैं। नृत्त के भेद ___ नृत्त के दो भेद है-( १ ) मधुर, (२) उद्धत । मधुर नृत्त को लास्य तथा उद्धत नृत्त को ताण्डव कहते हैं। नृत्य के भी यही भेद हैं। नृत्य और नृत्त के ये दोनों प्रकार लास्य और ताण्डव नाट्य के उपस्कारक होते है । नाटय में पदार्थाभिनय के रूप में नृत्य का तथा शोभाजनक होने के कारण नृत्त का प्रयोग किया जाता है। वस्तु, नेता और रस इनके भेदक तत्त्व है। ( वस्तुनेतारसस्तेषां भेदकः, दश० १११)। लास्य
नृत्य तथा नृत्त में सुकुमार तथा उद्धत भावों की व्यंजना के लिए भिन्न सरणी का आश्रय लिया जाता है। भावों की सुकुमार व्यंजना को लास्य कहते हैं। सावन आदि के अवसर पर किये जाने वाले कामिनियों के मधुर तथा सुकुमार नृत्य लास्य कहे जा सकते हैं । मयूर का कोमल नर्तन लास्य के अन्तर्गत आता है। यशस्तिलक में यन्त्रधारा-गृह का वर्णन करते हुए भवन-मयूर के लास्य का उल्लेख है । यन्त्र के बने हुए अनेक हाथी, सिंह, सर्प आदि के मुंह से घर्घर शब्द करता हुआ पानी निकलता था जिससे क्रीड़ा-मयूरों को मेघगर्जन का भ्रम होता और वे आनन्दविभोर होकर नाचने लगते । ।
७७. दश० २१० ७८. विविधव्यालवदनविनिर्गज्जलधाराध्वनितलयलास्यमानभवनांगणवहिणम् ।
-३५५७, हिन्दी
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