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ललित कलाएँ और शिल्प-विज्ञान
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ज्येष्ठ या उत्तम, राजाओं के लिए गृह की रचना होनी चाहिए ।
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मध्यम तथा जनसाधारण के लिए अवर प्रेक्षामध्यम प्रेक्षागृह में पाठ्य और गेय अधिक सरलता से सुने जा सकते हैं । इसलिए अन्य दोनों की अपेक्षा मध्यम प्रेक्षागृह अधिक अच्छा है ।
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अभिनय
नाट्यशाला के प्रसंग में अभिनय का भी उल्लेख यशस्तिलक ( ३२०१३ ) में आया है । यशोधर ने प्रयोगभंग तथा अनेक प्रकार के विचित्र आंगिक, वाचिक, आहार्य और सात्त्विक अभिनय करने में सिद्धहस्त ( प्रयोगभंगी विचित्राभिनयतन्त्रैर्भरतपुत्रैः, ३२०१३) अभिनेताओं के साथ नाट्यशाला में अभिनय देखा ।
रंगपूजा
अभिनय प्रारम्भ होने के पूर्व सर्वप्रथम रंगपूजा की जाती थी। रंगपूजा न करने वाले को तिर्यग्योनि का भागी तथा करने वाले को स्वर्गप्राप्ति और शुभ अर्थ प्राप्ति होना कहा गया है । ६७ यशस्तिलक में रंगपूजा का विस्तार से वर्णन है । सम्राट् यशोधर के नाट्यशाला में पहुँचने पर रंगपूजा प्रारम्भ होती है ( पृ० ३१८-३२२, हि. ) । इस प्रसंग में सरस्वती को सम्बोधित करके आठ पद्य निबद्ध किये गये हैं ( इति पूर्वरंगपूजाप्रक्रमप्रवृत्तं सरस्वती स्तुतिवृत्तम्, पृ० ३२२, हि. ) ।
पराग से
कानों में
ध्यान मुद्रा,
'सफेद कमल पर आसन अगर पर मन्द स्मित, केतकी के पिंजरित सुभग अंगयष्टि, धवल दुकूल, चारुलोचन, सिर पर जटाजूट, बाल चन्द्रमा के समान अवतंस, श्वेतकमलों का हार, एक हाथ में दूसरे में अक्षमाला, तीसरे में पुस्तक और चौथा हाथ वरद मुद्रा में सरस्वती का पूर्ण स्वरूप । भरत ने नाट्यशास्त्र में रंगपूजा के प्रसंग में देवीदेवताओं की जो लम्बी सूची दी है, उसमें सरस्वती भी हैं । प्राचीन साहित्य तथा पुरातत्त्व में सरस्वती के किचित् भिन्न-भिन्न अनेक रूप मिलते हैं । ६९ विद्या
६ - यह है
६५. नाट्यशास्त्र, २७, ८, ११ ६६. वही, २१२१
६७. नाट्यशास्त्र, १११२२-१२६
६८. यश० पृ० ३१८, श्लो० २६२-६३, हि०
६६. भटशाली - द इकोनोग्राफी ऑव् बुद्धिस्ट एण्ड ब्राह्मोनिकल स्कल्पचर्स इन द
ढाका म्युजियम, पृ० १८१-१८६
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