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________________ २३४ यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन २२. पटह यशस्तिलक में पटह का एक बार उल्लेख है। यह एक प्रकार का अवनद्ध वाद्य है । संगीतपारिजात में इसे ढोलक कहा है। संगीतरत्नाकर में इसके मार्ग पटह और देशो पटह दो भेद आये हैं और दोनों का ही विस्तृत विवेचन किया गया है। २३. डिण्डिम डिण्डिम का यशस्तिलक में एक बार उल्लेख है। सोमदेव ने इसकी ध्वनि को व्यालों को जगानेवाली कहा है ।६४ डिण्डिम डमरु की तरह का वाद्य है। इसका भांड मिट्टी का बना होता है और दोनों मुँहों पर पतली झिल्ली मढ़ी जाती है । झिल्ली को किसी डोर से नहीं बांधा जाता किन्तु वह मुख पर सरेस जैसो किसी चिपकनेवाली वस्तु से चिपको रहती है । बजाने के लिए बीच में डोरा बना रहता है जिसके अन्त में दो छोटो गांठे होती हैं। आजकल इसे डिमडिमी कहते हैं। नृत्य यशस्तिलक में नृत्य या नाटयशास्त्र से संबन्धित सामग्री भो पर्याप्त मात्रा में है । सबका विवेचन निम्नप्रकार है : नाट्यशाला दरबार से उठकर सम्राट् नाटयशाला में पहुँचे ( कदाचित् नाट्यशालासु, २१७१३, हि.)। नाट्यशाला का फर्श कामिनियों के चरणालक्तक से रागरंजित हो रहा था ( कामिनो जन चरणालक्त करसरागरंजितरंगतलासु, ३१६॥३, हि.)। ___ भरतमुनि ने नाटक खेलने के लिए नाट्यशाला, नाटयमण्डप या प्रेक्षागृह का विधान किया है। ये नाट्यमण्डप तीन प्रकार के बनाये जाते थे:-(१) विकृष्ट, ( २ ) चतुरश्र और ( ३ ) त्रयश्र । इन तीनों का प्रमाण क्रम से उत्तम, मध्यम और अवर ( जघन्य ) होता था। भरत ने लिखा है कि देवों के लिए ६२. पृ० ५८ ६३. संगीतरत्नाकर ६८०५ ६४. डिण्डिमध्वनिरिव व्यसनव्यालप्रबोधनकरः । -पृ० ६७ उत्त० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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