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यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन भी रघुवंश और मेघदूत में पुष्कर का उल्लेख किया है। ५. ढक्का
यशस्तिलक में ढक्का का उल्लेख युद्ध के प्रसंग में हुआ है। ढक्काएँ पोटी जाने लगी तो सेना के हाथियों के बच्चे डर गये।" श्रुतसागर ने ढक्का का अर्थ ढोल किया है।
ढक्का या ढोल एक अवनद्ध वाद्य है। काशिकाकार ने भी अवनद्ध वाद्यों में इसका उल्लेख किया है। यह लकड़ी का बना वर्तुलाकार वाद्य है, जिसके दोनों मुंह पर चमड़ा मढ़ा रहता है। आजकल भी ढक्का या ढोल का प्रचलन है। बड़े ढोल डण्डे से पीटकर बजाये जाते हैं, छोटे ढोल हाथ से भी बजाये जाते हैं । छोटे ढोल को ढोलकी या ढुलकिया कहा जाता है । ६. मानक
आनक का यशस्तिलक में कई बार उल्लेख है। श्रुतसागर ने आनक का अर्थ पटह किया है।
आनक एक मुंहवाला अवनद्ध वाद्य है, जिसके बजाने से मेघ या समुद्र के गर्जन के समान भयानक आवाज होती है। सोमदेव ने लिखा है कि प्रलयकाल के कारण क्षुभित सप्तार्णव के शब्द की तरह घोर शब्द करनेवाले आनक बजे। संस्कृत में आनक की व्युत्पत्ति इस प्रकार होगी-आनयति उत्साहवतः करोति, अनु-णिच्-णवुल । प्राचीन साहित्य में आनक के अनेक उल्लेख मिलते हैं। महाभारत में आनक का कई बार उल्लेख है। आजकल के नोबत या नगारा से इसकी पहचान करना चाहिए।
२३. तूर्य राहतपुष्करैः।-रघुवंश १७।११
पुष्करेष्वाहतेषु ।-मेघदूत ६८ २४. प्रहितासु वित्रासितसैन्यसामचिक्कासु ढक्कासु ।-पृ० ५८०
(चिक्का : करिशिशवः, श्रीदेव ) २५. ढक्कासु ढोल्लवादित्रेषु । वही, सं० टी० २६. काशिका ४।२।३५ २७. सं० २०६६१०६०-६४ २८. महानकेषु महापटहेषु ।-प.० ३८४ हि० २६. प्रलयकालक्षुभितसप्तार्णवघोरानकस्वानाविर्भावितभुवनान्तरालम् । पृ० ४४ ३०. महाभारत ३।१५।७, १॥ २१४॥ २५
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