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यशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन
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३०. शक्ति ____ शक्ति के प्रयोग में कुशल सैनिक को सोमदेव ने शक्तिकार्तिकेय कहा है। शक्ति सम्पूर्ण रूप से लोहे का बना भाले के समान अत्यन्त तीक्ष्ण आयुध था। यह स्कन्दकातिकेय तथा दुर्गा का अस्त्र माना जाता है । कार्तिकेय को मूर्ति के बायें हाथ में शक्ति का अंकन देखा जाता है। सोमदेव के द्वारा प्रयोग किये गये शक्तिकातिकेय पद में भी यही ध्वनि है।
३१. त्रिशूल
त्रिशल का भी उल्लेख पांचाल नरेश के दूत के प्रसंग में हुआ है। स्वयं सोमदेव के वर्णन से त्रिशूल के विषय में पर्याप्त जानकारी प्राप्त हो जाती है । त्रिशूल की तीन शिखाएँ होती हैं । इसका प्रहार वक्षस्थल पर किया जाता है । त्रिशूल भैरव का अस्त्र माना जाता है।
शिल्प में भी त्रिशूल महादेव का अस्त्र माना गया है। कहीं-कहीं परशु के साथ तथा कहीं कहीं केवल त्रिशूल का अंकन मिलता है।
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३२. शंकु ___शंकुधारी सैनिक को सोमदेव ने शंकुशार्दूल कहा है। शंकु लोहे या खदिर की लकड़ी का बना एक प्रकार का भाला या बर्थी जैसा शस्त्र होता था। इसका प्रयोग फेंक कर करते थे।"
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१२२. पृ० ५६२ १२३. सर्वलोहमयीशक्तिरायुधविशेषः।-वही, सं० टी०
तुलना - शक्तिश्च विविधास्तीक्ष्णाः ।-महाभारत, आदि पर्व, ३०,४६ १२४. भटशाली - द आइकोनोग्राफी आफ बुद्धिस्ट एण्ड ब्राह्म निकल स्कल्पचर्स,
पृष्ठ १४७, फलक ५७, चित्र ३ (ए) १२५. पृ० ५६० १२६. त्रिशूलभैरवः सासूयं त्रिशूलं वल्गयन्
इदं त्रिशूलं तिसृभिः शिखाभिर्भागत्रयं वक्षसि ते विधाय-पृ० ५६० १२७. बनर्जी - वही पृ० ३३०, फलक १, चित्र १६, १७, २१ (केवल त्रिशूल ) फलक .
१,चित्र १५, फलक ८, चित्र १,३, फलक , चित्र १,२ १२८. पृ० ५६३ १२६. अयः शंकुचितां रक्षा शतघ्नीमथ शत्रवे ( अक्षिपत् )।-रघुवंश, १२।५६
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