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२८. यष्टि
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सोमदेव ने याष्टीक सैनिकों का उल्लेख किया है । संस्कृत टीकाकार ने याष्टक का पर्याय प्रतिहारी दिया है । यष्टि धारण करने वाले प्रतिहारी याष्टीक कहलाते थे । म० म० गणपति शास्त्री ने यष्टि को मूसल की तरह नुकीली तथा खदिर की लकड़ी से बनने वाली बताया है । सोमदेव ने भी एक स्थान पर हाथी की सूंड को यष्टि से उपमा दी है, इससे भी यष्टि के स्वरूप की पहचान हो जाती है ।
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शिवभारत ( २५, २२ ) तथा भट्टीकाव्य ( ५, २४ ) में भी याष्टोक सैनिकों के उल्लेख आये हैं ।
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यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन
२६. लांगल
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वर्णन से ज्ञात होता वर्तमान में खेत जोतने
कि लांगल का प्रयोक्ता
पांचाल नरेश के दूत के प्रसंग में लांगलधारी सैनिक का उल्लेख है ।' लांगल संभवतया सम्पूर्ण लोहे का बनता था । सोमदेव के है कि लांगल का आकार ठीक वैसा ही होता था जैसा के काम में लिया जाने वाला हल | सोमदेव ने लिखा है यदि कुशल हो तो अकेला ही सम्पूर्ण युद्धरूपी खेत को जोत डालता है । विपक्षियों के शरीर की नसें चरमरा जाती हैं, चमड़ा फटकर अलग हो जाता है, खून सहस्रधार होकर बहने लगता है और शरीर की हड्डियां धनुष की कोटि की तरह चटपट शब्द करती हुई सो टूक हो जाती हैं ।
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हल संकर्षण बलराम का आयुध माना जाता है ।
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११५. यष्टीकैः प्रतिहारेः । - वही, सं० टी०
११६. मुसलयष्टिः खादिरः शूल: । - अर्थशास्त्र २१८, सं० टी० ११७. युष्टिरदः । पृ० ३०१
११८. उद्घृत, आप्टे - संस्कृत इंग्लिश डिक्शनरी, पृ० १३१२ ११६. सं० पू०, पृ० ५५६
१२०. लांगलगरल : सोल्लुण्ठालापं लांगलमुदानयमानः समरसंरम्भण, यस्मादिदमेकमेवत्रुटदतनुशिरान्ताः कीर्णकृतिप्रतानाः, क्षरदविरलरलस्फारधरासहस्राः । स्फुरदटनिकठोरष्टाकृतास्थी: समीके.
मम रिपुहृदयालीलींगलं लेलिखीति ॥ - पृ० ५५६
इतस्ततष्टोकमानैर्याष्टीकैर्विनीयमानानुकसेवकम् । पृ० ३७२
१२१. बनर्जी - वही, पृ० ३२८
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हे धीराः कृतं भवतां
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