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यशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन
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गदा के समान ही हथियार होता था। भारतीय सिक्कों में गदा और दण्ड का इतना साम्य है कि उनको पृथक्-पृथक् करना कठिन है। " २५. पट्टिस __ पट्टिस का दो बार उल्लेख है। उत्तरापथ की सेना में तथा चण्डमारी देवी के मन्दिर में कुछ योद्धा पट्टिस लिये हुए थे। गणपति शास्त्री ने पट्टिस को उभयान्त त्रिशूल कहा है। संभवतया पट्टिस लोहे का बना होता था, जिसके दोनों ओर त्रिशूल की तरह तीन-तीन नुकीले दांते बनाये जाते थे। २६. चक्र
चक्र का दो बार उल्लेख है। चक्र पहिए की तरह गोल आकार का लोहे का अस्त्र था । सोमदेव के विवरण से ज्ञात होता है कि चक्र को जोर से घुमा कर इस प्रकार फेंका जाता था कि सीधा शत्रु के सिर पर गिरे। कुशलतापूर्वक फेंके गये चक्र से हाथियों तक के सिर फट जाते थे।"
चक्र की कई जातियां होती थीं। सुदर्शन चक्र भगवान् विष्णु का आयध माना जाता है। कला में इसके दो रूप अंकित मिलते हैं। कहीं-कहीं चक्र का अंकन पूर्ण विकसित कमल की तरह भी मिलता है जिसमें पंखुड़ियां आरों का कार्य करती हैं। २७. भ्रमिल
चण्डमारी के मन्दिर में कुछ सैनिक भ्रमिल घुमाकर पक्षियों को भयभीत कर रहे थे। संस्कृत टीकाकार ने भ्रमिल का अर्थ चक्र किया है ।
१०५. बनीं-वही, पृ० ३२६ १०६. करोत्तम्भित-प्रासपट्टिस-ौत्तरपथबलम् ।-पृ० ४६५ १०७. अपरैश्च यामावासप्रवेशपरप्रासपट्टिस । -पृ० १४५ १०८. पट्टिस उभयान्तत्रिशूलः । -अर्थशास्त्र २०१८ सं० टी० १०६. पृ० ५५८, ३६० ११०, निपाजीव इव स्वामिन्स्थिरीकृतनिजासनः ।
चक्रं भ्रमय दिक्पालपुरभाजनसिद्धये ॥-पृ० ३६० चक्रविक्रमः साक्षेपं चक्रं परिक्रमयन् , नो चेद्वैरिकरीन्द्रकुम्भदलनव्यासक्तरक्तं मुहु-,
मुक्तं चक्रमकालचक्रमिव ते मूनि प्रपाति ध्रुवम् ॥-पृ० ५५८ १११. बनर्जी-वही पृ० ३२८, फलक ७, चित्र ४,७ । फलक , चित्र १ ११२. भ्रमिलभ्रमिभोषित- पृ० १४४ ११३. भ्रमिलं चक्रम् ।- वही, सं० टी०,
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