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यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन अंकुश लिये है। ईडर के भण्डार में स्थित कल्पसूत्र की सचित्र ताड़पत्रीय प्रति में चतुर्भुज इन्द्र भी ऊपर के बायें हाथ में अंकुश लिये चित्रित किया गया है। ___अंकुश का प्रयोग इतने प्राचीन काल से चले आने के बाद भी इसके स्वरूप
और उपयोगिता में कोई अन्तर नहीं आया। महावत हाथियों के लिए अभी भी अंकुश का प्रयोग करते हैं। १४. कणय
कणय का यशस्तिलक में दो बार उल्लेख है। उत्तरापथ के सैनिक अन्य हथियारों के साथ कणय भी उठाये हुए थे। सोमदेव ने कणय चलाने वाले योद्धाओं के प्रधान को कणयकोणप अर्थात् कणय चलाने में राक्षस के समान कहा है।५ ____संस्कृत टीकाकार ने एक स्थान पर कणय का अर्थ लोहे का बाण विशेष तथा दूसरे स्थान पर भूषणनिबन्धन आयुध विशेष किया है। प्रो. हन्दिकी ने कणय का अर्थ बरछी किया है । म० म० गणपति शास्त्री ने अर्थशास्त्र की व्याख्या में कणय के सम्बन्ध में विशेष जानकारी दी है - कणय सम्पूर्ण लोहे का बनता था। दोनों ओर तीन-तीन कंगूरे तथा बीच में मुट्ठी से पकड़ने का स्थान होता था। २० अंगुली का कनिष्ठ, २२ का मध्यम तथा २४ का उत्तम, इस तरह तीन प्रकार के कणय बनते थे।"
कणय का प्रहार शत्रु पर फेंककर किया जाता था (व्यत्यासन) । यदि कणय का प्रहार करने वाला कुशल हो तो युद्ध से हाथी, घोड़े, रथ, पदाति, सभी सैनिक ऐसे भागते हैं कि उनकी भगदड़ से उत्पन्न हवा से पृथ्वी घूमने-सी लगती है। ६२. मोतीचन्द्र - जैन मिनिएचर पेंटिंग्ज फ्राम वेस्टर्न इण्डिया, चित्र २०, २३, २४,
२६, २७, ३१ ६३. वही, चित्र ६० ६४. करोत्तम्भितकर्तरीकणय. • • • 'औत्तरपथबलम् । -पृ० ४६४ ६५. काणयकोणपः सामर्ष विहस्य । - पृ० ५६० ६६. कणय लोहबाणविशेषः । -पृ० ४६४, सं० टी० ६७. कणयः भूषणनिबन्धनायुधविशेषः । -पृ० ५६०, सं० टी० ६८. हन्दिकी - यशस्तिलक एण्ड इण्डियन कल्चर, पृ० ६० ६६. कणयः सर्वलोहमय उभयतस्त्रिकण्टकाकारमुखो मध्यमुष्टिः।
कनिष्ठो विंशतिः स्यात् तदङ्गुलानां प्रमाणतः ।
द्वाविंशतिमध्यमः स्याच्चतुर्विशतिरुत्तमः ॥-अर्थशास्त्र, अधि० २, अध्याय १८ ७०. हरत्यश्वरथपदातिव्यत्यासनवातपूणितक्षोणिः। -पृ० ५६०
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