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________________ २०८ यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन 31 वज्रहार के दाहिने हाथ में दो वज्र हैं, जिन्हें सोने से चिपकाया गया है।४८ वज्रसत्त्व के हाथ में भी वज्र है, किन्तु वह एक है । गौतम बुद्ध को एक मूर्ति के नीचे दस प्रकार की वस्तुओं का अंकन है, उनके ठीक मध्य में वज्र है । यह ऊपर बताये गये दो प्रकार के वनों में दूसरे प्रकार का है।" साहित्य में वज्र का सबसे प्राचीन उल्लेख ऋग्वेद (३,५६,२ ) में आया है। यहाँ अशनि या वज्र को इन्द्र का ध्वज कहा गया है (शक्रस्य महाशनिध्वजम्)। सिद्धान्तकौमुदी में एक सूत्र ( २११५१५) के उदाहरण में आया है - अनुवनमशनिर्गतः - अर्थात् अशनि वन की ओर चला गया। वहां अशनि का अर्थ बिजली गिरने से है । रामायण ( सुन्दरकाण्ड ४।२१ ) में अशनिधारी राक्षस सैनिकों का वर्णन है । महाभारत में अशनि को अष्टचक्र वाला महाभयंकर तथा रुद्र के द्वारा बनाया गया कहा है। कालिदास ने रघुवंश (८।४७ ) और कुमारसम्भव (४।४३) में अशनि का उल्लेख किया है । इन्दुमति के लिए विलाप करता हुआ अज कहता है कि ब्रह्मा ने इस पुष्पमाला को इन्दुमति के लिए अशनि बनाया।" नागानन्द में गरुण अपनी चोंच को अशनिदण्डकठोर बताता है । प्राकृत ग्रन्थों में अशनि का असणि रूप पाया जाता है। उत्तराध्ययन (२०,२१) में इन्द्र के आयुध के अर्थ में, प्रज्ञापना (१) में आकाश से गिरनेवाली बिजली के अर्थ में तथा भगवती (७,६ ) में ओलों की वर्षा के अर्थ में अशनि का उल्लेख हआ है। शिल्प. चित्र और साहित्य के इतने उल्लेखों के बाद भी रामायण के साक्ष्य के अतिरिक्त यह पता नहीं लगता कि अशनि केवल कल्पित शस्त्र था या व्यवहार में इसका प्रयोग भी होता था। हनुमान जब लंका पहुँचे तो वहाँ राक्षस-सैन्य में अशनिधारी सैनिकों को भी देखा। इससे प्रतीत होता है कि अशनि व्यवहार में भी अवश्य था। सोमदेव ने अशनि का उल्लेख युद्ध के आयुधों के प्रसंग में नहीं किया। वर्णरत्नाकर की सूची में भी अशनि या बज्र की गणना नहीं है । द्वयाश्रय महाकाव्य के संस्कृत टीकाकार ने दण्डायुधों की सूची में वज्र को गिनाया है। ५४ ४८. वही, पृ० २३ ४६. वही, पृ० ३०, फलक ८, चित्र १-ए (३) ५०. अष्टचक्रां महाघोरामशनि रुद्रनिर्मिताम् । -महा० ७, १३५, ६६ ५१. अशनिः कल्पित एष वेधसा । -रघु० ८।४७ ५२. भशनिदण्डचण्डतरया । -नागानन्द, ४।२७ ५३. शक्तिवृक्षायुधांश्चैव पटिशाशनिधारिणः । -सुन्दरकाण्ड ४।२१ ५४. व्याश्रय महाकाव्य सर्ग ११, श्लोक ५१, सं० टी० Jain Education International .. For Private & Personal Use only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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