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________________ यशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन २०७ ३९ तलवार थी, जिसकी धार पर पानी चढ़ाया जाता था । म० म० गणपति शास्त्री ने इसे सीधी तथा वृत्ताकार अग्रभाग वाली तलवार कहा है । ४० ११. असिपत्र असिपत्र का एक बार उल्लेख है । सम्भवतया यह एक प्रकार को छोटी छुरी थो । सोमदेव ने लिखा है कि पाण्डु देश में चण्डरसा ने मुण्डीर नाम के राजा को कबरी ( केशपाश ) में छिपाये हुए असिपत्र से मार डाला था । ४१ १२. प्रशनि 3 अशनि के लिए सोमदेव ने अशनि और वज्र, दो शब्दों का प्रयोग किया है । एक उपमा से इसकी भयंकरता का पता लगता | सोमदेव ने हाथियों के पैरों को वज्रपात की उपमा दी है । दूसरे प्रसंग में सिर पर उगे हुए सफेद बाल को वज्रदण्ड के गिरने के समान कहा गया है। इससे प्रतीत होता है कि यह वज्रदण्ड या डण्डे के आकार का शस्त्र था जिसका प्रहार प्रायः सिर पर किया जाता था । प्राचीन शिल्प और चित्रकला में वज्र का अंकन दो रूपों में मिलता है- एक डण्डे के आकार का, बीच में पतला और दोनों किनारों पर चौड़ा । दूसरा दो मुँह वाला जिसमें दोनों ओर नुकीले दाँते बने होते हैं । ४४ ४५ प्राचीन काल से अशनि या वज्र इन्द्र का हथियार माना जाता रहा है । बाद के चित्र और शिल्प में अनेक अन्य देवी-देवताओं के हाथ में भी यह हथियार देखने को मिलता है । ईडर के शास्त्र भण्डार में सुरक्षित सचित्र कल्पसूत्र की ताड़पत्रीय प्रति के अनेक चित्रों में इन्द्र हाथ में वज्र लिये दिखाया गया है ।' देवी वज्रतारा की मूर्तियों में एक हाथ में वज्र का अंकन मिलता है। 1 बुद्ध-देवता बुद्ध ४७ ३६. मण्डलाग्रधाराजल निम्ननिखिला रातिसंतानः । - पृ० ५६५ ४०. मण्डलाग्रः ऋजुवृत्ताकाराः । - अर्थशास्त्र. २१८, सं० टी० ४१. कबरीनिगूढेनासि पत्रेण चण्डरसा पाण्डुषु मुण्डीरम् । - पृ० १५३ उत्त० ४२. पादेषु सम्पादित वज्रसम्पातैरिव । - १०२८ ४३. प्रपदशनिदण्डाडम्बर: केश एषः । - पृ० २५२ ४४. बनर्जी — दी डेवलप्मेंट आफ हिन्दू भइकोनोग्राफी, पृ० ३३०, फलक ८ चित्र८, फलक ६, चित्र २,६ ४५. वही, पृ० ३३० ४६. मोतीचन्द्र – जैन मिनिएचर पेंटिंग्ज फ्राम वेस्टर्न इण्डिया, चित्र ६०, ६१,६२, ६६,७२ ४७. भटशाली - श्रइकोनोग्राफी आफ बुद्धिस्ट स्कल्पचर्स इन दी ढाका म्युजियम, पृ० ४ε Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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