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यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन
७. कौक्षेयक या करवाल
सोमदेव ने कौक्षेयक और करवाल दोनों को एक माना है। करवालवीर कर. वाल को लपलपाता हुआ कहता है कि मेरा यह कौक्षेयक युद्ध में सीने में से झरते हुए खून के लिए राक्षसों की प्रतीक्षा करता है। इस प्रसंग से यह भी स्पष्ट है कि करवाल का प्रहार प्रायः सीने पर किया जाता था।
यशस्तिलक में करवाल का उल्लेख दो बार और भी हुआ है। मारिदत्त को कौलाचार्य विद्याधर लोक को जीतने वाले करवाल की प्राप्ति का उपाय बताता
चण्डमारी के मन्दिर में कुछ लोग यमराज की दाढ़ के समान वक्र करवाल लिये हुए थे। ८. तरवारि
तरवारि को सोमदेव ने यमराज की जीभ के समान तरल कहा है। यशस्तिलक में तलवर का भी उल्लेख है जो सम्भवतया तरवारि धारण करने वाले पुरुष के लिए प्रयुक्त हुआ है। सबेरे एक चोर को साथ पकड़ कर तलवर राज-दरबार में आता है। ६. भुसुण्डि
भुसुण्डि का केवल एक बार उल्लेख है। चण्डमारी के मन्दिर में कुछ सैनिक भुसुण्डि भी लिये थे। संस्कृत टीकाकार ने भुसुण्डि का पर्याय गर्जक दिया है । भुसुण्डि सम्भवतया छोटी तलवार का ही एक प्रकार था। १०. मण्डलान
मण्डलान का एक बार उल्लेख है। यह एक प्रकार को अत्यन्त तीक्ष्ण
३२. करवालवीरः सक्रोधं करेण करवालं तरलयन्
विपक्षपक्षक्षयदक्षदीक्षः कौशेयको मामक एष तस्य ।
रक्षांसि वक्षः क्षतजैः क्षरद्भिः प्रतीक्षतेऽक्षुण्णतया रणेषु ॥ -पृ० ५५७ ३३. विद्याधरलोकविजयिनः करवालस्य सिद्धिर्भवतीति । -पृ० ४४ ३४. कैश्चित् कृतान्तदंष्ट्राकोटिकुटिलकरवाल । -पृ० १४३ ३५. कीनाशरसनातरलतरवारि ।-पृ० १४४ ३६, राजकुलानां सेवावसरेषु कृतास्थानस्य प्रविश्य तलवरः।-पृ. २४५ उत्त० ३७. अपरैश्च यमावासप्रवेश"भुषुण्डि । --पृ० १४५ ३८. भुषुण्ड्यश्च गर्जकाः। --वही, सं० टी०
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