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यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन
चढ़ाकर उसे तेज बनाया जाता था।' इसे मूठ में हाथ डालकर पकड़ते थे। दूत के द्वारा जब पांचाल नरेश को युद्धेच्छा का पता लगा तो असिधेनुका के प्रयोग में विशेषज्ञ, जिसे सोमदेव ने असिधेनुधनंजय कहा है, ने ईर्ष्या के साथ अपने हाथ को असिधेनुका को मूठ में डाला।
सोमदेव के अनुसार असिधेनुका का प्रयोग प्रायः सिर पर किया जाता था तथा इसके प्रयोग से तड़तड़ शब्द भी होता था।"
असिधेनुका कमर में लटकायी जाती थी । यशस्तिलक में दाक्षिणात्य सैनिक नाभिपर्यन्त असिधेनुका लटकाये हुए थे।
हर्षचरित में असिधेनुका सहित पदातियों का वर्णन है। उन्होंने कमर में कपड़े की दोहरी पेटी की मजबूत गाँठ लगा कर उसी में असिधेनुका खोंस रखी थी।" अहिच्छत्रा से प्राप्त गुप्तकालीन मिट्टी की मूर्तियों में एक ऐसे पदाति सैनिक की मूर्ति मिली है, जो कमर में असिधेनु बाँधे हुए है। ३. कर्तरी
यशस्तिलक में कर्तरी का उल्लेख कैंची तथा युद्धास्त्र दोनों के अर्थ में हुआ है। कैंची का प्रयोग दाढ़ी आदि बनाने के लिए किया जाता था ( कर्तरीमुखवुम्बितामूलश्मश्रुबालम्, पृ० ४६१)। उत्तरापथ के सैनिक अपने हाथों में जिन विभिन्न हथियारों को उठाये हुए थे उनमें कर्तरी भी थो।' अमरकोषकार ने कर्तरी और कृपाणी को पर्याय बताया है (कृपाणीकर्तरीसमे, २,१०,३४)। हेमचन्द्र ने कर्तरी के लिए कृपाणी, कर्तरी और कल्पनी नाम दिये हैं। वर्णरत्नाकर में दण्डायुधों में इसकी गणना नहीं है, किन्तु हेमचन्द्र के टोकाकार ने जो छत्तीस आयुधों की सूची दी है, उसमें कर्तरी की गणना है । सम्भवतया एक विशेष प्रकार की
१५. यस्यासिधारापयः । -पृ० ५५४, शस्त्रीष्विव पयोलवः । - पृ० १५२ उत्त. १६. असिधेनुधनञ्जयः सेय॑मसिमातृमुष्टौ पंचशाखं विधाय । -पृ० ५६१ १७. तडतडिति तस्यैषा शस्त्री त्रोटयते शिरः। -पृ० ५६१ १८. पानाभिदेशोत्तम्भितासिधेनुकम् । -पृ० ४६२ १६. द्विगुणपट्टपट्टिकागाढ प्रन्थिप्रथितासिधेनुना । -हर्ष० २१ २०. अग्रवाल - हर्षचरित : एक सांस्कृतिक अध्ययन, फलक, २, चित्र १२ २१. करोत्तम्भितकर्तरीकणय. . . . . . 'औत्तरपथं बलम् । -यश० पृ० ४६४ २२. कृपाणी कर्तरी कल्पन्यपि। -अभिधानचिन्तामणि, ३१५७५ २३. द्वयाश्रयमहाकाव्य, सग ११, श्लोक ५१, सं० टो०
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