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यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन का पिनाक कहलाता था। गांगेय ( भीष्म ), द्रोण, राम, अर्जुन, नल तथा नहुष आदि राजा भी धनुष-विद्या के पारंगत योद्धा रहे हैं।"
सोमदेव ने शब्दवेधी बाण का भी उल्लेख किया है। यशोमति महाराज ने शब्दवेधित्व कौशल दिखाने के लिए कुक्कुट को आवाज सुनकर उन्हें तीर का निशाना बनाया।"
यशस्तिलक में धनुष-विद्या से सम्बन्धित जितनी सामग्री आयो है उसका सम्मिलित परिचय इस प्रकार है - पृष्ठ
(१) धनुर्वेद-धनुष चलाने की विद्या का विश्लेषण करने
वाला शास्त्र ५९९
(२) शराभ्यासभूमि-वह स्थान जहाँ धनुष-विद्या सिखायी
जाती
६०१ ३३२ ६०१
६०१ ६०१
(३) धन्वी-धनुष चलाने वाला (४) धनुर्धर-धनुष धारण करने वाला सैनिक
(५) पिनाक-महादेव का धनुष ६०१
(६) शाङ्ग-विष्णु का धनुष (७) गाण्डीव-अर्जुन का धनुष
(८) कालपृष्ठ-कर्ण का धनुष ६००
(९) धनु-धनुष ५७२-७३, ६००-१ (१०) चाप-धनुष ५५५,७४,७६,१२४,३६६ ५५९,५७०,६०१,६०२ (११) कोदण्ड-धनुष ५५५,५७३ (१२) खरदण्ड-धनुष ४६५
(१३) बाणासन-धनुष ५७१
(१४) शरासन-धनुष ७४
(१५) अजगव-धनुष
१३. त्वं कर्णः कालपृष्ठे भवसि बलिरिपुस्त्वं पुनः साधु शाङ्ग,
गाण्डीवेऽग्रस्त्वमिन्द्रः क्षितिरमण हरस्त्वं पिनाके च साक्षात्। बालास्त्रप्रायचापाञ्चनचतुरविधेस्तस्य किं श्लाघनीयम् ।
गाङ्ग यद्रोणरामार्जुननल नहुषक्ष्मापसाम्ये तव स्यात् ॥-पृ० ६०२, १४. पृ० ५६१,
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