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यशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन
२०१ योक्ति में उसे इतना अधिक बताया है कि - धनुष पर डोरी चढ़ाते समय जैसे भूकम्प की स्थिति आ जाती हो।
धनुष की ध्वनि भी बहुत तेज होती थी। सोमदेव ने उसे आनन्द दुंदुभि के समान कहा है।
कुशल योद्धा जब धनुष चलाता है तो शीघ्रता के कारण यह पता नहीं लग पाता कि धनुष बायें हाथ में है अथवा दाहिने में या दोनों हाथों से ही बाण छोड़ रहा है। प्रयत्न-लाघव की इस क्रिया को 'खुरली' कहा जाता था। महावीरचरित में भी दो बार (२. ३४, ५५) खुरली का उल्लेख आया है।'
धनुष-बाण के द्वारा अत्यन्त दूरस्थ शत्रु को भी मारा जा सकता है । लगातार छोड़े गये बाण बध्य व्यक्ति तथा मौर्वी (धनुष की डोरी ) के बीच में ऐसे लगते हैं जैसे पृथ्वी को नापने के लिए डोरा डाला गया हो। ____ लक्ष्य यदि इतनी दूर हो कि दिखाई भी न पड़े तो भी पुंख-अनु¥ख के क्रम से भेद कर बाण गुणस्यूत ( सूई के धागे ) को तरह आगे निकल आता है। इसे सोमदेव ने 'सद्गुण्ययोग्याविधि' कहा है।"
आगे, पीछे, दाहिनें, बायें, ऊपर, नीचे अत्यन्त शीघ्र निरवधि ( अनवरत ) थनुष चलाने की क्रिया 'कोदण्डांचनचातुरी' कहलाती थी।" इस क्रिया में धनुर्धर ऐसा लगता है जैसा उसके पूरे शरीर में हाथ और आँखें लगी हों।
धनुष के प्राचीन इतिहास के विषय में भी यशस्तिलक से पर्याप्त जानकारी मिलती है -
कर्ण का धनुष कालपृष्ठ, विष्णु का शाङ्ग, अर्जुन का गाण्डीव तथा महादेव
५. खर्वन्न्युध्रिरन्ध्राण्यपि दधति ककुप्सिन्धुराः साध्वसानि ।
गाधन्तेऽम्भोधयोऽपि क्षितितलविरसद्वीचयस्ते महीश,
ज्यारोपासंगसीदद्धनुरटनिभरभ्रस्यभूगोलकाले ॥-पृ० वहो, ६. आनन्ददुन्दुभिरिव......"चापस्य ते ध्वनिः ।-पृ० ६०० ७. शस्त्रप्रपञ्चखुरली खलु कः करोतु ।-वही, ८. उद्धृत आप्टे - संस्कृत इंग्लिश डिक्शनरी । ६. यश० पृ० वही, १०. एवं चापविजृम्भितानि भवतः सद् गुण्ययोग्याविधौ । पृ० ६०१, ११. कोदण्डांचनचातुरी रचयतः प्राकपृष्ठपक्षद्वयोर्ध्वाधोविषयेषु । -पृ० ६०१, १२. प्रत्यङ्गविनिमितेक्षणभुजाः। वही
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