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परिच्छेद बारह
शस्त्रास्त्र
यशस्तिलक में सोमदेव ने छत्तीस प्रकार के शस्त्रास्त्रों की जानकारी दी है। इससे अधिकांश शस्त्रास्त्रों का स्वरूप, उनके प्रयोग करने के तरीकों तथा कतिपय अन्य आवश्यक बातों पर भी प्रकाश पड़ता है।
शस्त्रास्त्रों के उल्लेख मुख्य रूप से तीन प्रसंगों पर हुए हैं : (१) चण्डमारी के मन्दिर में आयोजित समारोह के वर्णन में, (२) विविध देशों की सेनाओं का परिचय कराते समय तथा (३) पांचाल नरेश के दूत के सम्राट् यशोधर के दरबार में पहुंचने पर। इसके अतिरिक्त कुछ अन्य प्रसंगों पर भी कतिपय शस्त्रास्त्रों का उल्लेख प्रसंगवश हो गया है। उन सबके सम्बन्ध में विशेष जानकारी निम्नप्रकार है
१. धनुष
धनुष के विषय में सोमदेव ने विशेष रूप से ध्यान आकर्षित किया है तथा संसार के सभी अस्त्रों में श्रेष्ठ बताया है। आयुध-सिद्धान्त में धनुर्वेद अपने आप में एक पूरा विज्ञान है । शराभ्यासभूमि में जाकर धनुष चलाने की विधिवत् शिक्षा ली जाती थी। यदि धनुष चलाना आ गया तो अन्य अस्त्र चलाना आ ही जाता है, किन्तु अन्य सभी अस्त्र चलाना आ जाने पर भी धनुष चलाना नहीं आ सकता।
धनुष को अटनि को जमीन पर टिकाकर उस पर ज्या (डोरी) चढ़ायी जाती थी। ज्या चढ़ाने में जमीन पर अत्यधिक दबाव पड़ता था। सोमदेव ने अतिश
१. यावन्ति भुवि शस्त्राणि तेषां श्रेष्ठतरं धनुः । ___ धनुषां गोचरे तानि न तेषां गोचरो धनुः ॥-पृ० ५६६, श्लो० ४६५ २. आयुधसिद्धान्तमध्यासादितसिंहनादाद्धनुर्वेदादुपश्रुत्य समाश्रितशराभ्यासभूमिः ।
-पृ० ५५६ ३. धनुषां गोचरे तानि न तेषां गोचरो धनुः ॥-पृ० ५६६ ४. कूर्मः पातालमूलं श्रयति फणिपतिः पिण्डते न्यञ्चदण्डः,
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