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________________ १९८ न्यास यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन सोमदेव ने न्यास या धरोहर रखने का उल्लेख किया है । भद्रमित्र विदेश यात्रा के लिए गया तो आचार, व्यवहार और विश्वास के लिए विश्रुत श्रीभूति के पास उसकी पत्नी के समक्ष सात अमूल्य रत्न न्यास रख गया । ४९ न्यास रखते समय यह अच्छी तरह विचार लिया जाता था कि जिस व्यक्ति के पास न्यास रखा जा रहा है वह पूर्ण प्रामाणिक और विश्वासपात्र व्यक्ति है | इतना होने पर भी न्यास रखते समय साक्षी अपेक्षित समझी जाती थी । ५० कभी-कभी ऐसा भी होता था कि जिस व्यक्ति के पास न्यास रखा गया है, उसकी नियत खराब हो जाये और वह यह भी समझ ले कि न्यासकर्ता के पास ऐसा कोई प्रमाण नहीं है जिससे वह कह सके कि उसने उसके पास अमुक वस्तु रखी है, तो वह न्यास को हड़प जाता था । भद्रमित्र सब सोच-समझ कर श्रीभूति के पास अपने सात बहुमूल्य रत्न रख कर विदेश यात्रा के लिए गया था, किन्तु दुर्भाग्य से लौटने में उसका जहाज समुद्र में डूब गया । संयोग से वह बच गया और आकर श्रोभूति से अपने रत्न माँगे । श्रीभूति ने न्यास को तो नकारा ही, साथ ही भद्रमित्र को बहुत ही बुरा-भला कहा और उल्टा ले जाकर राजा के पास पेश कर दिया । ५१ भृति धारणा अच्छी नहीं थी, ५२ भृति या नौकरी के प्रति साधारणतया लोगों की प्रत्युत इसे निंद्य माना जाता था । इसका मुख्य कारण यह था कि भृत्य या सेवक कार्य करने के विषय में अपने मालिक के निर्देश पर अवलम्बित रहता है और उसका अपना मन या विवेक वहाँ काम नहीं देता । अनेक प्रसंग ऐसे भी आते हैं जब भृत्य को अपनी इच्छा के विपरीत भी कार्य करने पड़ते हैं । उसी समय धारणा बनती है कि नौकरी करने वाले का सत्य जाता रहता है । करुणा के साथ ४६-५०. विचार्य चातिचिरमुपनिधिन्या सयोग्यमावासम् उदिताचारसेव्योऽवधारितेतिकर्तव्यस्तस्याखिललोकश्लाघ्यविश्वासप्रसूतेः श्रीभूतेहस्ते तत्पत्नी समक्ष मनघं कक्षमनुगताप्तकं रत्नसप्तकं निधाय । पृ० ३४५ उत्त० ५१. अध्याय ७, कल्प २७ ५२. श्रा : कष्टा खलु शरीरिणां सेवया जीवनचेष्टा । - १० १३६ सेवावृत्तेः परमिह परं पातकं नास्ति किंचित् । - वही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002134
Book TitleYashstilak ka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokulchandra Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1967
Total Pages450
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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