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कार्षापण
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कार्षापण प्राचीन भारत का सबसे प्रसिद्ध सिक्का था । यह चांदी का बनता था । मनुस्मृति में इसे ही धरण और राजतपुराण ( चाँदी का पुराण ) भी कहा है । पाणिनि ने इन सिक्कों को आहत कहा है । उसी के अनुसार ये अंगरेजी में पंच मार्ड के नाम से प्रसिद्ध हैं । ये सिक्के बुद्ध-युग से भी पुराने हैं तथा भारतवर्ष में ओर से छोर तक पाये जाते हैं । अब तक लगभग पचास सहस्र से भी अधिक चाँदी के कार्षापण मिल चुके हैं ।
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मनुस्मृति के अनुसार चांदी के कार्षापण या पुराण का वजन बत्तीस रत्ती था। सोने या ताँबे के कर्ष का वजन अस्सी रत्ती था ।
यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन
कार्षापण की फुटकर खरीज़ भी होती थी । अष्टाध्यायी, जातक तथा अर्थशास्त्र में इसकी सूचियाँ आयी हैं । अष्टाध्यायी में कार्षापण को केवल पण कहा है । इसके अर्ध, पाद, त्रिमाष, द्विमाष, अध्यर्ध या डेढ़ माष, माष और अर्धमाष का उल्लेख है । कात्यायन ने इन में काकणी और अर्धकाकणी नाम और जोड़े हैं । जातकों में कहापण, अड्ढ, पाद या चत्तारोमासक, तयोमासक, द्वैमासक, एकमासक और अड्डमासक नाम आये हैं । अर्थशास्त्र में पण, अर्धपण, पाद, अष्टभाग, माणक, अर्धमाणक, काकणी तथा अर्धकाकणी नाम आये हैं ।
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सुवर्ण
निष्क की तरह सुवर्ण एक सोने का सिक्का था। अनगढ़ सोने को हिरण्य कहते थे और उसी के जब सिक्के ढाल लेते तो वे सुवर्ण कहलाते थे ।
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सुवर्ण का वजन मनुस्मृति के अनुसार अस्सी रत्ती या सोलह माषा होता था । कौटिल्य ने एक कर्ष अर्थात् अस्सी गुंजा ( लगभग १५० ग्राम ) के बराबर सुवर्ण का वजन बताया है । बहुत प्राचीन सुवर्ण उपलब्ध नहीं होते फिर भी गुप्त युग के जो सुवर्ण सिक्के मिले हैं उनका वजन प्रायः इतना ही है । ४३
३८ द्वे कृष्णले समधृते विज्ञ यो रौप्यमाषकः ।
ते षोडश स्याद्धरणं पुराणश्चैव राजत ।। ८।१३५-३६
३६. अष्टाध्यायी, ५। २] १२०
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४०. अग्रवाल
४१. वही
४२. भण्डारकर - प्राचीन भारतीय मुद्राशिल्प, पृ० ५१ ४३. अग्रवाल - पाणिनिकालीन भारतवर्षं, पृ० २५३
पाणिनिकालीन भारतवर्ष, पृ० २५६
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