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यशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन
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- चम्पापुर के प्रियदत्त श्रेष्ठी की रूपसी कन्या विपत्ति की मारी शंखपुर के निकट पर्वत की तलहटी में पहुंची। वहाँ पुष्पक नाम के वणिक्-पति का सार्थ पड़ाव डाले था। पुष्पक कन्या के रूप-सौन्दर्य को देखकर मोहित हो गया। अनेक तरह के लोभ देकर उसे वश में करने लगा, किन्तु जब वश में नहीं हुई तो अयोध्या में लाकर एक वेश्या को दे दिया। ___ जिस तरह भारतीय सार्थ विदेशी व्यापार के लिए जाते थे उसी तरह विदेशी सार्थ भारत में भी व्यापार करने के लिए आते थे । सोमदेव ने एक अत्यन्त समृद्ध पैण्ठास्थान (बाजार) का वर्णन किया है, जहां पर अनेक देशों के व्यापारी व्यापार के लिए आते थे। कार इसका विशेष वर्णन किया गया है। विनिमय के साधन
सोमदेव ने विनिमय के दो प्रकार बताये हैं : (१) वस्तु का मूल्य मुद्रा या सिक्के के रूप में देकर खरीदना या (२) वस्तु का वस्तु से विनिमय । मुद्रा या सिक्कों में सोमदेव ने निष्क, कार्षापण और सुवर्ण का उल्लेख किया है। इनके विषय में संक्षिप्त जानकारी इस प्रकार है - निष्क
निष्क के प्राचीनतम उल्लेख वेदों में मिलते हैं। उस समय निष्क एक प्रकार के सुवर्ण के बने आभूषण को कहा जाता था जो मुख्य रूप से गले में पहना जाता था और जिसे स्त्री-पुरुष दोनों पहनते थे। __ वैदिक युग के बाद निष्क एक नियत सुवर्ण मुद्रा बन गयो, ऐसा बाद के साहित्य से ज्ञात होता है। जातक, महाभारत तथा पाणिनि में निष्क के उल्लेख आये हैं।
मनुस्मृति में निष्क को चार सुवर्ण या तोन सौ बीस रत्ती के बराबर कहा है।
३२. पृ० २६३ उत्त० ३३. पृ० ३४५ उत्त० ३४. वरं सांशयिकानिष्कादसांशयिकः कार्षापणः। -पृ. १२ उत्त.
पलव्यवहारः सुवणेदक्षिणासु । -पृ० २०२ ३५. अग्रवाल - पाणिनिकालीन भारतवर्ष, पृ० २५० ३६. वही, पृ० २५१-५२ ३७. मनुस्मृति ८।१३७
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