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शास्त्र । चित्रकला और शिल्पशास्त्र । कामशास्त्र और दत्तक, वात्स्यायन का कामसूत्र, रतिरहस्य, चौसठ कलायें, भोगावलि या राजस्तुति । काव्य और कवि-उर्व, भारवि, भवभूति, भर्तृहरि, भर्तमेण्ठ, कण्ठ, गुढ़ाढ्य, व्यास, भास, वोस, कालिदास, बाण, मयूर, नारायण, कुमार, राजशेखर, अहिल, नीलपट, वररुचि, त्रिदश, कोहल, गणपति, शंकर, कुमुद, तथा कैकट । दार्शनिक और पौराणिक साहित्य । गजविद्या-गज शास्त्र सम्बन्धी पारिभाषिक शब्द, यशोधर के पट्ट बन्धोत्सव के हाथी का वर्णन, गज के अन्तरंग-बाह्य गुणों का विचारउत्पत्तिस्थान, कुल, प्रचार, देश, जाति, संस्थान, उत्सेध, आयाम, परिणाह, आयु, छवि, वर्ण, प्रभा, छाया, आचार, शोल, शोभा आवेदिता, लक्षण-व्यंजन, बल, धर्म, वय और जव, अंश, गति, रूप, सत्त्व, स्वर, अनूक, तालु, अन्तरास्य, उरोमणि, विक्षोभकटक, कपोल, सृक्व, कुम्भ, कन्धरा, केश, मस्तक, आसनावकाश, अनुवंश, कुक्षि, पेचक, वालधि, पुष्कर, अपर, कोश । गजोत्पत्ति-पौराणिक तथ्य, गज के भेदभद्र, मन्द, मृग, संकीर्ण, यागनाग । मदावस्थाएँ तथा उनका चौदह प्रकार का उपचार । गजशास्त्र विशेषज्ञ आचार्य, गजपरिचारक, गज शिक्षा, गजदर्शन और उसका फल, गजशास्त्र के कतिपय विशिष्ट शब्द । अश्व-विद्या-अश्व के ४३ गुण, अन्य गुणों की तुलनात्मक
जानकारी, अश्व के पर्यायवाची शब्द, अश्व-विद्याविद् ।। परिच्छेद ११ : कृषि तथा वाणिज्य आदि . १८९-१९९
कृषि, कृषि योग्य जमीन, सिंचाई के साधन, सहज प्राप्य श्रमिक, उचित कर । बीज वपन, लुनाई तथा दौनी । ऊसर जमीन । वाणिज्यस्थानीय व्यापार, हर सामग्री की अलग-अलग हाटें, व्यापार के केन्द्रपैण्ठास्थान, पैण्ठास्थानों की व्यवस्था। सार्थवाह और विदेशी व्यापार, सुवर्णद्वीप और ताम्रलिप्ति का व्यापार । विनिमय, वस्तु-विनिमय, विनिमय के साधन, निष्क, कार्षापण, सुवर्ण । न्यास, न्यास रखने का आधार, न्यास धरने वाले की दुर्बलताएं। भृति या नौकरी तथा
नौकरी के प्रति जन साधारण की धारणाएँ । परिच्छेद १२ : शस्त्रास्त्र
२००--२१९ छत्तीस प्रकार के आयुध और उनका परिचय-धनुष, धनुर्वेद, शराभ्यासभूमि, धनुष चलाने की प्रक्रिया, धनुर्वेद विशेषज्ञ, धनुर्वेद की
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