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यशस्तिलककालीन सामाजिक जीवन ... जिस राजा के एक भी प्रशस्त अश्व होता है, युद्ध में उसकी विजय सुनिश्चित है, उसी के राज्य में समय पर पानी बरसता है और उसी के राज्य में प्रजा के धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष पुरुषार्थ सधते हैं।
जिस राजा के श्रेष्ठ अश्व होते हैं उसके लिए यह धरती उस स्त्री के समान है जिसके कुलाचल कुच हैं, समुद्र नितंब, नदियां भुजाएँ तथा राजधानी मुख है ।७७
अश्व के लिए यशस्तिलक में निम्नलिखित शब्द आये हैं(१) गन्धर्व (पृ० १२), (२) तुरग (पृ० २९, ३१४, ३१५), (३) तुरंगम (पृ० ३१३, ३१४, ३१६), (४) अश्व (पृ. ३२), (५) वाहा (पृ० ७०, ३१३), (६) वाजि (पृ० १८६, ३१३ उत्त०) (७)मितद्रव पृ० ३१४), (८) अर्वन्त (पृ० ३०७), (९) हय (पृ० ३१२, ३१५), (१०) जुहुराण (पृ० २१४)।
अश्वचालक या घुड़सवार को अभिषादी कहते थे (पृ० ३१२) । अश्वविद्याविद्
सोमदेव ने यशोधर को अश्वविद्या में रैवत के समान कहा है।७८ ऊपर लिखा जा चुका है कि रैवत अश्वविद्या-विशेषज्ञ माने जाते थे। इसीलिए
७७. कदनकन्दुककेलि विलासिनः परबलस्खलने परिधः हयाः ।
सकलभूवलयेक्षणदृष्टयः समरकालमनोरथसिद्धयः॥ अन्यूनाधिकदेहा समसुविभक्ताश्च वर्मभिः सर्वैः । संघतघनांगबन्धाः कृतविनयाः कामदास्तुरगाः ॥ जयः करे तस्य रोषु राज्ञः काले परं वर्षति वासवश्च । धर्मार्थकामाभ्युदयः प्रजानामेकोऽपि यस्यास्ति हयः प्रशस्तः॥ कुलाचलंकुचाम्भोधिनितम्बा वाहिनी भुजा ।. धरा पुरानना स्त्रीव तस्य यस्य तुरंगमाः ।।
- यश. पृ. ३१५,३३६ ७८. रैवत इव हयनयेषु, वही, पृ० २३६
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